पहलवान की ढोलक पाठ के प्रश्न उत्तर | Pahalwan KI Dholak Class 12 Question Answer

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पुस्तक:आरोह भाग दो
कक्षा:12
पाठ:13
शीर्षक:पहलवान की ढोलक
लेखक:फणीश्वर नाथ रेणु

NCERT Solution For Class 12 Hindi Aroh Chapter 13 Pahalwan KI Dholak

प्रश्न 1: कुश्ती के समय ढोल की आवाज और लु’न के दाँव-पेंच में क्या तालमेल था? पाठ में आए ध्वन्यात्मक शब्द और ढोल की आवाज आपके मन में कैसी ध्वनि पैदा करते हैं, उन्हें शब्द दीजिए।

उत्तर- लुट्टन पहलवान ढोलक को अपना गुरु मानता है: उसकी थाप उसे एक गुरु के समान प्रेरित करती है। ढोलक की अलग-अलग ताल का पहलवान के लिए अलग-अलग अर्थ है- चट् धा, गिड़-धा यानि ‘आ जा भिड़ जा’। चटाक -चट-धा का अर्थ है- ‘उठाकर पटक दें। चट् गिङ-धा यानि ‘मत डरना’। धाक धिना, तिरकट-तिना अर्थात ‘दाँवकाटकर बाहर आ जा’ धिना-धिना, धिक धिना अर्थात चित्त करो। इस प्रकार ढोलक की इन थापों का अर्थ समझकर पहलवान अजेय हो गया और गाँव के लोग उसे प्रेरणापुँज मानने लगे। ढोलक की थापों का इस तरह का प्ररेणादायी अर्थ केवल कलाकार ही निकाल सकता है एक सामान्य ससारी व्यक्ति नहीं कला का अर्थ कलाकार ही जान सकता। ढोलक की थाप सामान्य व्यक्ति के लिए शोर करने का कारण मात्र है।

प्रश्न 2: कहानी के किस-किस मोड़ पर लुट्टन के जीवन में क्या-क्या परिवर्तन आए?

उत्तर- मेला देखने गए लुट्टन ने जब चाँदसिंह उर्फ ‘शेर के बच्चे’ को पलटी मारी तब उसे राज-पहलवान बना दिया गया। उसे सारे राजसी ढाटबाट प्राप्त हो गए। राजाश्रय पाकर पहलवान की कला अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँच गई। राजा साहब की मृत्यु के पश्चात हुए सत्ता परिवर्तन के कारण लुट्टन को राज दरबार से निकाल दिया गया। भूखमरी और महामारी से पहलवान अपने दोनों बेटों सहित मृत्यु को प्राप्त हो गए। दोनों घटनाएँ लुट्टन के उत्थान व पतन का कारण बन जाती है।

प्रश्न 3: लुट्टन पहलवान ने ऐसा क्यों कहा होगा कि मेरा गुरु कोई पहलवान नहीं यहीं ढोल है?

उत्तर- माँ-बाप की मृत्यु के बाद लुट्टन का पालन पोषण उसकी विधवा सास ने किया था। गाँव के लोग उसकी सास को तरह-तरह की तकलीफ दिया करते थे। उन्हीं सब लोगों से बदला लेने के लिए उसने कसरत करनी शुरू की थी। वह कुश्ती के दाँव पेच सीखने किसी गुरु पहलवान के पास कभी नहीं गया। परिस्थितिवश पहलवान बने लुट्टन को चाँद सिंह से कुश्ती के समय ढोलक की थाप से ही प्ररेणा प्राप्त होने लगी। जैसे धिना धिना, धिक्-धिना’ की थाप उसे कह रही थी ‘चित्त करो: चित्त करो’। ऐसा शक्तिवर्धन उत्साह केवल एक गुरु से प्राप्त हो सकता है। यह सब कुछ उसे ढोलक की थाप से प्राप्त हुआ। इसी कारण लुट्टन ने यह बात स्वीकारी कि उसका गुरु कोई पहलवान नहीं यहीं ढोल है, और अपने दोनों लड़कों को भी ढोल का सम्मान करने तथा उससे प्रेरणा लेने की शिक्षा देता है।

प्रश्न 4: गाँव में महामारी फैलने और अपने बेटों के देहांत के बावजूद लु’न पहलवान ढोल क्यों बजाता रहा?

उत्तर- एक कलाकार के लिए कला की सेवा से बढ़कर कुछ भी नहीं होता। लुट्टन पहलवान की तरह वह सारा जीवन उसकी सेवा में व्यतीत कर देता है। ढोल की थाप से प्रेरणा पाकर लुट्टन अजेय हो गया था। महामारी और बेटों की मृत्यु से भी वह हार नहीं मानता और ढोल बजाता रहता है। ढोल को वह अपना गुरु मानता है। उसने सोचा होगा कि जैसे एक पहलवान ढोल की थाप से प्रेरित होकर हारी हुई बाजी भी जीत सकता है। शायद गाँव के लोग भी इससे उत्साहित होकर मौत से हार न मानें। यही कारण थे कि वह मृत्यु आने तक ढोल बजाता रहा। ढोलक की थाप तथा पहलवान की हिम्मत और दिलेरी गाँव के लोगों को आसानी से मरने में सहायक सिद्ध हो रही थी।

प्रश्न 5: ढोलक की आवाज का पूरे गाँव पर क्या असर होता था?

उत्तर- ढोलक थाप मृत्त-गाँव में संजीवनी शक्ति भरती रहती थी। पहलवान संध्या से सुबह तक ढोलक बजाता था। ढोलक की यह थाप बूढ़े बच्चे जवान तथा बीमारों तक की शक्तिहीन आँखों के सामने दंगल का सजीव दृश्य प्रस्तुत करती थी। स्पदन और शक्ति शून्य नसों में भी बिजली का संचार कर देती थी। वे मृत्यु का सामना करने से डर नहीं रहे थे। ढोलक की यह थाप पूरे गाँव में मौत के भय को कम करके उनमें शक्ति का संचार कर रही थी।

प्रश्न 6: महामारी फैलने के बाद गाँव में सूर्योदय और सूर्यास्त के दृश्य में क्या अंतर होता था?

उत्तर- महामारी के कारण गाँव से दो-तीन लाशें हर रोज़ उठ रही थीं। चारों तरफ लोग दिन रात मौत का भय देख रहे थे। सूर्योदय के समय लोगों में यह जानने की उत्सुकता अधिक होती थी कि किस की मृत्यु रात के समय हो चुकी है। सभी अपने-अपने घरों से निकलकर अपने पड़ौसियों और आत्मीयों को ढ़ाढ़स देते थे। लोग रात के समय मरे हुओं के प्रियजनों को सांत्वना देते थे। सूर्यास्त के समय लोग अपनी-अपनी झोपड़ियों में चुपचाप चले जाते थे। उनकी बोलने की शक्ति भी समाप्त हो जाती थी। पास में दम तोड़ते पुत्र को अंतिम बार ‘बेटा’ कहकर पुकारने की हिम्मत भी माताओं को नहीं होती थी। जहाँ सूर्योदय के समय एक क्रियाशीलता दिखाई पड़ती है, वहीं सूर्यास्त के समय एक सन्नाटा तथा खामोशी का डर लोगों की पीड़ा को अधिक कर देता है।

प्रश्न 7: कुश्ती या दंगल पहले लोगों और राजाओं का प्रिय शौक हुआ करता था। पहलवानों को राजा एवं लोगों के द्वारा विशेष सम्मान दिया जाता था।

(क) ऐसी स्थिति अब क्यों नहीं है?–
(ख) इसकी जगह अब किन खेलों ने ले ली है?
(ग) कुश्ती को फिर से प्रिय खेल बनाने के लिए क्या-क्या कार्य किए जा सकते हैं?

(क) कुश्ती या दंगल पहले लोगों और राजाओं का प्रिय शौक हुआ करता था। समय के साथ-साथ लोगों के शौक

उत्तर

भी बदल गए। उस समय लोगों के मनोरंजन के साधन कम थे। विज्ञान की उन्नति व सत्ता परिवर्तन ने इसके लिए अनेक विकल्प तैयार कर दिए। साधनों की अधिकता के कारण लोगों के स्वभाव, शौक और रुचियाँ सभी में परिवर्तन हुआ है। जनता में कुश्ती या दंगल का आकर्षण भी कम हो गया है।

(ख) कुश्ती और दंगल की जगह अब पश्चिमी खेलों ने ले ली है, जैसे बॉक्सिंग, जुड़ों-कराटे, ताइक्वांडो, कहानी के अनुसार दंगल का स्थान अब घुड़ दौड़ ने ले लिया है। (ग) कुश्ती को फिर से प्रिय खेल बनाने के लिए सरकार और जनता दोनों को मिलकर उससे जुड़े खिलाड़ियों को विशेष सम्मान प्रदान करें। उनकी सुविधाओं तथा उनके परिवार के लोगों की सुरक्षा का समुचित प्रबन्ध करें। उनके राजगार तथा भविष्य की चिन्ता को मिटाया जाए, तो कुश्ती को पहले जैसा वैभव प्राप्त हो सकता है।

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प्रश्न 8:आशय स्पष्ट करें आकाश से टूटकर यदि कोई भावुक तारा पृथ्वी पर जाना भी चाहता तो उसकी ज्योति और शक्ति रास्ते में ही शेष हो जाती थी। अन्य तारे उसकी भावुकता अथवा असफलता पर खिलखिलाकर हँस पड़ते थे।

उत्तर- लेखक ने गाँव की दयनीय अवस्था का वर्णन करते हुए कहा है कि अमावस्या की काली और ठंडी रात में पृथ्वी पर प्रकाश का नाम तक नहीं है। लेखक ने इस पद में एक प्रतीक के माध्यम से स्पष्ट किया है कि अधकार को नष्ट करने के लिए यदि कोई टूटा हुआ तारा पृथ्वी पर आना चाहता है तो वह भी बीच में ही नष्ट हो जाता है। अन्य चमकते तारे उसकी भावुकता और असफलता पर हँसते हैं। यहाँ चमकता आकाश सत्ता या शासकों का प्रतीक है जो विलासिता का जीवन व्यतीत कर रहे हैं। अंधकार ग्रामीण जीवन या साधारण जन की दुर्दशा का प्रतीक है। तारा शासक वर्ग उन कुछ भावुक व्यक्तियों का प्रतिनिधित्व करता है जो गरीब और महामारी से पीड़ित लोगों की सहायता करना चाहते हैं, लेकिन ऐसा करने में असफल रहते हैं और साथी-जन की हँसी का पात्र बनते है। इस तरह लेखक ने एक पूर्ण प्रतिबिम्ब प्रस्तुत किया है।

प्रश्न 9:पाठ में अनेक स्थलों पर प्रकृति का मानवीकरण किया गया है अर्थात् प्रकृति के उपादानों को मानवीय क्रियाएँ करते हुए दिखाया गया है। पाठ में से ऐसे अंश चुनिए और उनका आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- पाठ में अनेक स्थलों पर प्रकृति का मानवीकरण किया गया है ऐसे अंश निम्नलिखित हैं

(ख) गाँव भयात शिशु की तरह थर-थर काँप रहा था।
(क) अँधेरी रात चुपचाप आँसू रही थी।
(ग) निस्तब्धता करुण सिसकियों और आहों को बलपूर्वक अपने हृदय में ही दबाने की चेष्टा कर रही थी।
(घ) अन्य तारे उसकी भावुकता और असफलता पर खिलखिलाकर हँस पड़ते थे।

Aroh Chapter Pahalwan KI Dholak Class 12 Shabdarth

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