सहर्ष स्वीकारा है पाठ सारांश |Saharsh Swikara Hai Class 12 Summary in Hindi

NCERT Solution:- Saharsh Swikara Hai Poem Class 12th Chapter 5 of Aaroh Part-II Book has been developed for Hindi Course. We are going to show Summary & Saransh with Pdf. Our aim to help all students for getting more marks in exams.

पुस्तक:आरोह भाग दो
कक्षा:12
पाठ:5
शीर्षक :सहर्ष स्वीकारा है
लेखक:गजानन माधव मुक्तिबोध

Saharsh Swikara Hai Class 12th Explanation & Vyakhya In Hindi

जिंदगी में जो कुछ है, जो भी है
सहर्ष स्वीकारा है;
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है। वह तुम्हें प्यारा है।

प्रसंग:- प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिन्दी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह’ में संकलित ‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता से उद्धृत है। इसके कवि ‘गजानन माधव मुक्तिबोध’ जी है। इस कविता में उन्होंने जीवन जीने का सही संदेश प्रदान किया है। जीवन के सभी पक्षों को शान्त स्वभाव के साथ स्वीकार कर लेना ही जीवन की सच्ची कला है।

व्याख्या:- ‘मुक्तिबोध’ जी इस कविता के माध्यम से मानव जाति को यह संदेश देना चाहते हैं कि जिन्दगी के समय में जो कुछ भी अच्छी-बुरी घटनाएँ, यादें, बातें आती हैं, उन्हें हमें खुशी-खुशी स्वीकार कर लेना चाहिए। क्योंकि कवि का विश्वास है कि जो कुछ भी मेरे भाग्य में ईश्वर ने लिखा हुआ है वह सब उसने सोच विचार कर ही लिखा है। कवि को सभी सुख-दुखों को देने वाला भगवान ही है और भगवान को उसके सभी भावों के साथ लगाव है। भावार्थ यह है कि जिन्दगी में भगवान के द्वारा दिए सभी कार्यों को प्रसन्नतापूर्वक करना चाहिए।

काव्य विशेष-
(क) भाव पक्ष

जिन्दगी के सभी सुख-दुख हमें साहस व खुशी के साथ अपनाने चाहिए। एक सिक्के के दो पहलुओं के समान सुख-दुख भी जीवन रूपी गाड़ी के दो पहिए है।

(ख) कला पक्ष

• सरल, सरस प्रवाहपूर्ण भाषा का सुन्दर प्रयोग हैं।
• तुकबंदी के कारण काव्य में गेयता का गुण विद्यमान (विद्यमान) है।
• सहर्ष-स्वीकारा अनुप्रास अलंकार का सौन्दर्य दिखाई देता है।
• सहज शब्दावली में भी कवि ने विचारों की गहनता व गम्भीरतापूर्ण बात को स्पष्ट करने का प्रयास किया है।
• सहर्ष भाव को विशेषण रूप में सौन्दर्यात्मक रूप प्रदान किया है।

गरबीली गरीबी यह, ये गंभीर अनुभव सब
यह विचार वैभव सब
दृढ़ता यह, भीतर की सरिता यह अभिनव सब
मौलिक है, मौलिक है
इसलिए कि पल-पल में
जो कुछ भी जाग्रत है अपलक है
संवेदन तुम्हारा है!

प्रसंग:- पूर्ववत् । इन पंक्तियों में कवि ने अपने विचारों की अटलता व संघर्षमयी जीवन को संवेदनाएँ व्यक्त की है।

व्याख्या:- कवि कहता है कि उसके जीवन की अनेक अनुभूतियों को उसने प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार किया है। उसे अपनी गरीबी पर गर्व है. अर्थात जिस प्रकार भूखा ही भोजन के सही स्वाद का आनन्द ले सकता है उसी प्रकार जिसने गरीबी झेली हो वही अमीर होने पर इस पर गर्व अनुभव कर सकता है। जो भी उसको अपने जीवन में कड़वे मीठे (गंभीर गहरे) अनुभव हुए हैं। उसके अटल विचारों की जो यह सम्पति है, भण्डार भरे हुए हैं और उसके अन्तर्मन से उठने वाली भावों रूपी नदी कवि को बिल्कुल नई व मूल रूप में लगती है। अर्थात कवि के अन्दर सुख-दुख के सभी भाव व विचारों रूपी भण्डार सब कुछ इस संसार में होने वाली घटनाओं के अनुरूप ही हैं। कवि उस ‘परम सत्ता’ की उपस्थिति को स्वीकार करते हुए कहता है कि संसार में जो कुछ भी क्षण-क्षण होता रहता है उस सब को एकटक रूप से देखने वाले एक तुम्ही हो। अर्थात् केवल प्रभु ही इस समस्त संसार पर नज़र रखते हुए उनको सुख-दुख प्रदान करने वाला है। कवि ने उस ‘परम सत्ता’ के आदेश को पालन करने का संदेश देते हुए उसमें अटल विश्वास व आस्था प्रकट की है।

काव्य सौन्दर्य
(क) भाव पक्ष
कवि ने जीवन के सभी भावों को सम्यक रूप में स्वीकार करने की प्रेरणा देते हुए गरीबी को भी गर्वित रूप में स्वीकार किया है।

(ख) कला पक्ष –

• भाषा सरल, सहज होते हुए भी भावात्मकता लाने में पूर्ण सफल सिद्ध हुई है।
• तत्सम् प्रधान शब्दावली का सुन्दर प्रयोग है।
• गरबीली, अपलक आदि शब्दों में नए प्रयोग करने में कवि को सफलता मिली है।
• गरबीली-गरीबी, विचार वैभव आदि में अनुप्रास अलंकार की छटा सौन्दर्य वृद्धि में सहायक है।
• मौलिक है, मौलिक है तथा पल-पल में पुनरूक्ति प्रकाश अलंकार का सुन्दर प्रयोग है।
• विचारों की गंभीरता को प्रकट करने का कवि का भरसक प्रयास है।
• तुकबंदी के कारण काव्य में गेयता आई है। छन्द मुक्त काव्य की छटा विद्यमान है।

जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है
जितना भी उड़ेलता हूँ, भर-भर फिर आता
दिल में क्या झरना है?
मीठे पानी का सोता है
भीतर वह ऊपर तुम
मुसकाता चाँद ज्यों धरती पर रात-भर
मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है!

प्रसंग:- पूर्ववत् । इन पंक्तियों में कवि प्रेरणा के उस मूल तत्त्व के साथ अपने सम्बन्ध को जोड़ता है। कवि उस परम सत्ता की ‘सहजता’ को स्वीकार करते हुए, उसके पास न होते हुए भी उसके होने का एहसास अनुभव करता है।

व्याख्या:- मुक्ति बोध जी उस प्रेरणा स्रोत की संस्था को स्वीकार करते हुए कहते हैं कि उसके साथ न जाने कैसा अटूट रिश्ता व बन्धन है। कवि को उससे कभी न भूल पाने वाला एहसास हो रहा है। कवि जितना भी उसे भूलने की कोशिश करता है वह उतनी ही ओर अधिक आने लगती है। अर्थात् उसकी यादों से उसका मन भर जाता है। यह दिवंगता ‘परम सत्ता’ उसकी माँ, बहन, पत्नी, सहचरी कोई भी हो सकती है जो लगातार उसको प्ररेणा दे रही है। और जिसको मीठी यादों का झरना या कोई बड़ा स्रोत उसके हृदय में विद्यमान है। जो बार-बार उसे उसकी यादों से भर देता है। कवि अपने प्रियजन के साथ जीवन के बिते हुए मीठे अनुभव का स्मरण कर रहा है। कवि के हृदय के अन्दर उस प्रेरणा स्रोत की प्यारी मोठी यादें हैं और ऊपर (आकाश) से भी वह उसके होने का एहसास कर रहा हो। जैसे अन्दर व बाहर सब जगह वह उसके साथ हो। कवि कहता है कि जिस प्रकार पूर्णिमा का चाँद सारी रात धरती पर अपनी रोशनी व मुस्कराहट प्रदान करता है उसी प्रकार मुझे तो तुम्हारा वह प्यारा खिला हुआ चेहरा हर समय नज़र आता है। अर्थात् कवि अपने उस प्रेरणा स्रोत के संसार से चले जाने के बाद भी उसको भुला नहीं पा रहा है। उसकी मीठी यादों व उसके चेहरे को हमेशा अपने पास ही होने का अनुभव करता है।

काव्य सौन्दर्य
(क) भाव पक्ष

• कवि अपनी प्रेरणादायक शक्ति की यादों को भूल नहीं पा रहा है। उसके हृदय में उसकी मीठी यादों का व चेहरे का सुन्दर एहसास बार-बार उसकी याद दिलाता है।
• अपने उस विशिष्ट व्यक्ति को चाँद के समान मानकर कवि लाक्षणिकता के माध्यम से भावात्मकता में वृद्धि कर रहा है।

(ख) कला पक्ष

• सरल, सरस व प्रवाहमयी भाषा का सुन्दर प्रयोग है।
• भाषा में सहजता के चलते भावात्मक व विचारात्मक
गंभीरता का सुन्दर दृश्य प्रस्तुत किया गया है।
• अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है।
• ‘भर-भर’ में पुनरूक्ति प्रकाश अलंकार की छटा छाई है।
• अन्तिम पंक्तियों में उत्प्रेक्षा अलंकार का सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत किया गया है।
• कवि ने रहस्यात्मक व प्रश्नात्मक शैली का प्रयोग कर काव्य सौन्दर्य में वृद्धि की है।
• अद्भुत रस प्रधान काव्य को प्रस्तुत किया गया है।
• तुकबंदी के कारण कविता में गेयता का गुण उत्पन्न हुआ है।
• मुक्त छन्द युक्त काव्य शैली है।

सचमुच मुझे दंड दो कि भूलूँ मैं भूलूँ मैं
तुम्हें भूल जाने की
दक्षिण ध्रुवी अंधकार अमावस्या
शरीर पर, चेहरे पर, अंतर में पा लूँ मैं
झेलूँ मैं, उसी में नहा लूँ मैं

प्रसंग:- पूर्ववत्। प्रस्तुत पंक्तियों में कवि चाहता है कि उसे अपनी प्रेरणा देने वाली की मधुर स्मृति को भूल जाने का दंड’ मिलना चाहिए क्योंकि अब वो मधुर यादें कवि द्वारा सहन नहीं हो रही हैं। इसलिए वह भूलने को दण्ड पुरस्कार रूप में माँगता है।

व्याख्या:- कवि को अपने उस विशिष्ट जन के सहज-प्रेम की उष्मा जब विरह में अग्नि के समान लगने लगती है तो वह उससे अलगाव चाहता है, उसके मोह से मुक्ति पाना चाहता है। इसलिए कवि प्रभु से दंड के रूप में उसकी अस्मृति
को माँगता है। वह चाहता है कि भूलने की प्रक्रिया उसके अन्दर हृदय में इस प्रकार घटित है जैसे दक्षिणी ध्रुव पर चाँद
के थोड़ा छिप जाने पर अमावस्या की रात का घना अंधकार छा जाता है। कवि चाहता है कि उसकी स्मृतियों से बाहर
निकल कर जब अंधेरे से सामना हो तो उसके हृदय की शक्ति में वृद्धि हो। भूलने की शक्ति कवि अपने शरीर में, चेहरे पर व अपने अन्तर्मन में इस प्रकार ग्रहण करना चाहता है जिससे उसको उसकी दिवंगता को भूलने में सहायता मिले। वह आप को पूर्ण रूप से लीन करके वास्तविकता को पाना चाहता है। अर्थात् जिस प्रकार भूलना एक अवगुण है। लेकिन दुःखो को भूलना एक गुण या शक्ति के रूप माना जाता है उसी प्रकार कवि भूलने को दण्ड रूप में लेना चाहता है और अपने लिए उसे वरदान साबित करता है।

काव्य सौन्दर्य

(क) भाव पक्ष –

• दुख को भूलना कवि एक शक्ति मानता है। जो व्यक्ति को वास्तविकता से परिचित करवाती है।
• (मुसीबतों) विपत्तियों के अन्धकार में ही व्यक्ति को अपने साहस व ताकत का पता चलता है। साधारण शब्दों के द्वारा कवि ने विचारात्मक व भावात्मक गंभीरता का वर्णन दिया है।

(ख) कला पक्ष

• सहज, सरस, सरल भाषा से काव्य सौन्दर्य में वृद्धि हुई है।
• छन्द मुक्त शैली का सुन्दर प्रयोग है।
• दंड-दो, अन्धकार- अमावस्या आदि में अनुप्रास अलंकार है।
• भूलूँ मैं, भूलूँ मैं में पुनरूक्ति प्रकाश अलंकार है। तुकबंदी के कारण काव्य में गेयता का गुण विद्यमान है।
• दक्षिणी ध्रुवी में रूपक अलंकार का प्रयोग है। शब्द-योजना सार्थक एवं प्रसंगानुकूल है।

इसलिए कि तुमसे ही परिवेष्टित आच्छादित
रहने का रमणीय यह उजेला अब
सहा नहीं जाता है।
नहीं सहा जाता है।
ममता के बादल की मँडराती कोमलता
भीतर पिराती है
कमजोर और अक्षम अब हो गई है आत्मा यह छटपटाती छाती को भवितव्यता डराती है
बहलाती सहलाती आत्मीयता बरदाश्त नहीं होती है!!

प्रसंग:- पूर्ववत्। यहाँ कवि ने अपने दिवंगत की स्मृतियों को असहनीय मानते हुए इन्हें भूल जाने का भाव प्रकट किया है। वह अपने भविष्य के लिए इसे भूलाना चाहता है।

व्याख्या:- कवि उस विशिष्ट जन से उसकी स्मृतियों से अपने-आपको अंगीकार कर लेना चाहता है क्योंकि वह उन्हें वास्तविक रूप में प्राप्त नहीं कर सकता। क्योंकि कवि जानता है कि उससे (परम सत्य से) जुड़ी हुई मोहक, उज्ज्वल व प्रकाशमयी स्मृतियाँ उसके चारों ओर छाई हुई है जिन्हें वह कुछ ही क्षणों में खो देने वाला है। इसलिए कवि का मत है कि खो जाने का भय, खो देने से भी बड़ा है, इसलिए वह इसे अच्छा मानता है कि खो जाने को वह तकलीफ भीतर ही भीतर विलीन हो जाए। अपनी भूलने की शक्ति को बढ़ाते हुए वह भूलने का दण्ड माँगता है।

कवि कहता है कि उस प्रेरणादायनी की उसके प्रति ममता, स्नेह को बारिश व नाजुक, स्वच्छ स्मृतियाँ बादलों में मंडराने के समान बार-बार उसके हृदय में उठ कर आती रहती है और उसके हृदय को अंदर ही अंदर विरह की पीड़ा देने वाली है। कवि की आत्मा उस ‘परम सत्ता’ की स्मृतियों में क्षीण व शक्तिहीन होती जा रही है। उसे भविष्य के बारे में डर लग रहा है कि कहीं अब ये मधुर लगने वाली यादें भविष्य में कहीं उसके हृदय को व्याकुल, बेचैन न कर दें अर्थात् उसे विरह की पीड़ा न झेलनी पड़े। भवितव्यता के इसी डर के कारण उसकी बहलाने, सहलाने व अपनेपन को जताने वाली स्मृतियाँ उससे (कवि) सहन नहीं हो रही है। अर्थात सुखद यादें हमेशा दुःखद पीड़ा का कारण बनती है। कुछ ऐसे ही कवि की ये उसके साथ बिताई मधुर यादें उस परम सत्ता के खो जाने पर विरह का कारण बन जाएंगी जो कि असहनीय होगी।

काव्य सौन्दर्य –

(क) भाव पक्ष – कवि कहता है कि भूल जाना भी एक कला है। मधुर स्मृतियों की अति भी कष्टदायी होती है। क्योंकि बिरह के बाद हमेशा दुःख ही मिलते हैं।

(ख) कला पक्ष –

• कवि की शब्द-योजना सार्थक व प्रसंगानुकूल है।
• साधारण शब्दों के द्वारा कवि ने विचारात्मक एवं भावात्मक गंभीरता का वर्णन किया है।
• अनुप्रास अलंकार का सुन्दर प्रयोग है।
• छन्द मुक्त प्रवाहमयी कविता है।
‘• बादल की मँडराती कोमलता’ में रूपक अलंकार हैं।
• तुकबंदी के कारण गेयता का गुण विद्यमान है।
• परिवेष्टित, आच्छादित, अक्षम, भवितव्यता में तत्सम् प्रधान शब्दों की सुन्दता है। साथ ही उर्दू व नए शब्दों का प्रयोगभी सुन्दर बन पड़ा है।

सचमुच मुझे दंड दो कि हो जाऊँ
पाताली अँधेरे की गुहाओं में विवरों में
धुएँ के बादलों में
बिलकुल मैं लापता
लापता कि वहाँ भी तो तुम्हारा ही सहारा है !! इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
या मेरा जो होता-सा लगता है, होता-सा संभव
है सभी वह तुम्हारे ही कारण के कार्यों का घेरा है, कार्यों का वैभव है।
अब तक तो जिंदगी में जो कुछ था, जो कुछ है
सहर्ष स्वीकारा है इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है।
वह तुम्हें प्यारा है।

प्रसंग:- पूर्ववत्। इन पंक्तियों में कवि कहता है कि ‘अस्मृति’ दंड सही, फिर भी पुरस्कार मानकर ही ग्रहण करना चाहिए। इसलिए वह इन अस्मृतियों के अन्धेरे में गुम होना चाहता है पर पूर्णता प्राप्त नहीं कर पाता।

व्याख्या:- कवि यहाँ भी अपने आपको अस्मृति की शक्ति के रूप में दण्ड देना चाहता है। वह उस ‘परम सत्ता’ से विस्मृति का अन्धेरा माँगता है और कहता है हे प्रभु! मुझे ऐसा दंड दो कि मैं धरती के तले गहरे अंधेरे की गुफाओं के गत में या धुएँ से भरे हुए काले घने बादलों में कहीं पर खो जाऊँ अर्थात् कवि अपनी पिछली मधुर यादों को भूलना चाहता है। जिस प्रकार अतिशय प्रकाश से आँखें चौंधिया जाती है और तब अंधेरा अच्छा लगता है उसी प्रकार कवि स्मृतियों के अत्यधिक प्रकाश से बचने के लिए विस्मृति के अन्धकार को ग्रहण करना चाहता है।

फिर कवि विचार करता है कि धुएँ के बादल भी पूर्ण विस्मृति कायम नहीं कर सकते है। स्मृतियों का धुंधलापन वहाँ भी है अर्थात् उस परमसत्ता का रूप सभी जगह विद्यमान है। इसलिए कवि विचार करता है मनुष्य की सम्पूर्ण चेतना, अंधेरा- उजाला, सुख-दुख, स्मृति- विस्मृति सब उस प्रभु के द्वारा ही रचा हुआ है। कवि कहता है कि जो कुछ भी मेरे साथ हुआ है। या जो भी स्मृति- विस्मृति, सुख-दुख मुझे अपना लगता है या अपना बनने वाला लगता है वह सब उसी परम सत्ता के कारण ही हुआ है। ये सभी उसी के द्वारा सौपें हुए कार्यों का भार, वैभव है। इसलिए की अपना सब कुछ उस परम सत्ता’ पर ही छोड़कर इन भावों से मुक्त होना चाहता है।
कवि अपनी बीती ज़िन्दगी के बारे में पूर्ण विचार करते हुए कहते हैं कि अब तक जो भी सुख-दुख, अच्छी-बुरी घटनाएँ आई हैं उन्हें खुशी-खुशी मैंने स्वीकार कर लिया है। इसलिए कवि को विश्वास है कि जो कुछ भी सुख-दुख भगवान उसे देना चाहता है वह सब उसी के कारण है और सभी उसी के प्यार के कारण व्यतीत होता है।

काव्य सौन्दर्य

(क) भाव पक्ष

• कवि का संदेश है कि जीवन में जो कुछ भी अच्छी-बुरी घटनाएँ, विपत्तियाँ सामने आती है हमें उनका सामना
खुशी-खुशी, साहस के साथ करना चाहिए। इसके पक्ष में कबीर की पंक्तियाँ बड़ी प्रसिद्ध हैं ‘ना किछु किया न करि सक्या, ना करणें जोग सरीर तेरा तुझको सौंपता का लागे है मोर।।’

• कवि भूलने को ‘दंड’ न मानकर पुरस्कार रूप में ग्रहण करता है और सब कुछ प्रभु के विश्वास पर छोड़ देता है।

(ख) कला पक्ष –

• कवि की सार्थक शब्द योजना ने गंभीर विचार की प्रवाहमयता व प्रसंगानुकूलता को दर्शाया है।
• अनुप्रास अलंकार का सुन्दर प्रयोग है। रूपक अलंकार की छटा भी सौन्दर्य वृद्धि करती है।
• नवीन बिम्ब व शब्द योजना का प्रयोग हुआ है। तुकबंदी व नाद सौन्दर्य द्वारा काव्य में गेयता का गुण आया है।
• छन्द मुक्त शैली में काव्य की सौन्दर्यात्मक रचना हुई है। तत्सम् प्रधान शब्दों की भी प्रचुरता है।

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