NCERT Solution:- Rubaiya, Gazal Poem Class 12th Chapter 10 of Aaroh Part-II Book has been developed for Hindi Course. We are going to show Summary & Saransh with Pdf. Our aim to help all students for getting more marks in exams.
पुस्तक: | आरोह भाग दो |
कक्षा: | 12 |
पाठ: | 10 |
शीर्षक : | रूबाइया, गज़ल |
लेखक: | फिराक गोरखपुरी |
Rubaiya, Gazal Class 12th Explanation & Vyakhya In Hindi
आँगन में लिए चाँद के टुकड़े को खड़ी
हाथों पे झुलाती है उसे गोद भरी
रह-रह के हवा में जो लोका देती है
गूंज उठती है खिलखिलाते बच्चे की हँसी
प्रसंग:- प्रस्तुत रुबाई हमारी पाठ्य पुस्तक ‘आरोह’ में संकलित शायर ‘फिराक गोरखपुरी’ द्वारा रचित ‘ रुवाइयाँ’ शीर्षक से उद्धृत है। इन पंक्तियों में शायर ने एक माँ के
अपने बच्चे के प्रति वात्सल्य भाव को वर्णित किया है।
व्याख्या- फिराक गोरखपुरी ने बच्चे की हँसी से माँ को मिलने वाली खुशी का वर्णन करते हुए कहा है कि माँ अपने आँगन के चाँद के टुकड़े अर्थात् अपने बच्चे को लिए खड़ी है। माँ बच्चे को अपने हाथों में झुलाती है तो कभी उसे अपनी गोद में भर लेती है। जब बच्चे को हवा में उछाल-उछाल कर प्यार देती है, तो बच्चा खिलखिलाकर हँस पड़ता है। बच्चे की इसी खिलखिलाती हँसी से सारा आँगन हँसी से सराबोर जाता है। जो माँ की खुशी को और अधिक बहा देता है। इस रुवाई में शायर ने बच्चे की तुलना चाँद से की है। जैसे आसमान का चाँद रात के अंधकार को समाप्त करके इसे चाँदनी से भर देता है. उसी प्रकार एक बच्चा भी अपनी हँसी से घर परिवार तथा आँगन के दुख को खुशी में बदल देता है।
काव्य-सौन्दर्य
भाव पक्ष-
• वात्सत्य रस का वर्णन बड़े ही मार्मिक ढंग से किया गया है।
• बाल सुलभ क्रियाओं जैसे बच्चे का हँसना उस हाथों में झुलाना तथा उसकी गुंजती हंसी का सुंदर वर्णन किया गयाहै।
• सूरदास के बाल लीला वर्णन से मिलता जुलता प्रसंग है।
कला-पक्ष
• बच्चे की तुलना चाँद के टुकड़े से करके रूपक तथा उपमा अलंकार का प्रयोग किया है।
• रह रह में पुनरुक्ति प्रकाश अंलकार है।
• लोका देना तथा गोद भरना लोक प्रचलित शब्द है।
• हिंदुस्तानी भाषा अर्थात हिन्दी-उर्दू व लोक भाषा का मिश्रण से भाव सहज व सरस बन जाते हैं।
• बाल सुलभ क्रियाओं का वर्णन इस प्रकार किया गया है कि आँखा के सामने एक शब्द-चित्र झूमने लगता है।
नहला के छलके छलके निर्मल जल से
उलझे हुए गेसुओं में कंघी करके
किस प्यार से देखता है बच्चा मुंह को
जय घुटनियों में ले के है पिन्हाती कपड़े
प्रसंग:- पूर्ववत् इस रुवाई में शायर ने भाव से परिपूर्ण अनेक बाल सुलभ क्रियाओं में प्रसन्न माँ के विभिन्न शन ि है।
व्याख्या:- एक माँ बच्चे में सम्बन्धित प्रत्येक कार्य मे प्रसन्नता प्राप्त करती है। बच्चे को साफ स्वच्छ जल से स्नान करवाकर उसके उलझे हुए बालों में कधी करके बड़े प्यार से उसके मुँह की और बार-बार देखता है, तो उसे परम आनन्द की अनुभूति होती है। उसे घुटनों में पकड़कर जब कपड़े पहनाए जाते हैं तो उससे भी माँ को प्रसन्नता ही प्राप्त होती है। हर बार बच्चा जब प्यार से अपनी माँ की और देखता है तो माँ को ममता बच्चे पर उमड़ पड़ती है। बच्चे के प्रति उसका प्यार और बढ़ जाता है।
काव्य-सौन्दर्य
भाव पक्ष
• कात्सल्य भाव का सुंदर चित्रण है।
• बच्चे की प्रत्येक गतिविधि से माँ की प्रसन्नता स्वाभाविक है। • घुटनों में लेकर कपड़े पहनाना शायर की विशेष देन है।
• नहलाना, उत्तझे बाल कभी करना, कपड़े पहनाना, क्रमबद्ध कार्य है।
कला-पक्ष
• छलके उलके में पुनरुक्ति अलंकार है।
• हिन्दी, उर्दू और लोकभाषा के शब्दों का प्रयोग किया गया है।
• बाल सुलभ क्रियाओं के वर्णन से आँखों के सामने एक बच्चे का चित्र झूमने लगता है।
• निर्मल जल में अनुप्रास अलंकार है।
• ‘किस प्यार से देखता है। पद में किस शब्द का प्रयोग प्यार को और अधिक बढ़ाने में सफल हुआ है।
दीवाली की शाम घर पुते और सजे
चीनी के खिलौने जगमगाते लावे
वो रूपवती मुखड़े पे इक नर्म दमक
बच्चे के परादे में जलाती है दिए
प्रसंग:- प्रस्तुत हवाई हमारी तक अन्तर्गत संकलित स्वाद नामक शीर्षक में सो गई है। इसके शायर जनाब ‘फिराक गोरखपुरी’ जा है। गपुर जोन इस रूप में के उपरागत और उससे उल्लास का सहज वर्णन किया है।
व्याख्या:- शायर कहते हैं कि दीवाली को शाम को सभी पर साफ स्वच्छ तथा लीपे पोते हुए सुंदर लग रहे हैं। सभी अपने घरों को सजाने में लगे हुए हैं। चीनी के मीठे खिलौने तथा जगमगाने वाले खिलौने की परमार है। चीनी के खिलौने भी जगमगा रहे है। चारों ओर खुशी का माहौल है। ऐसे वातावरण में बच्चों के बनाए हुए मिट्टी के घरों में भी दिए जलाकर में उन्हें भी प्रकाशित करने का प्रयास किया जा रहा है। प्रकाश के इस उत्सव में पर की सुन्दर स्त्रियों के चेहरे पर एक कोमल चमक आना स्वाभाविक है दिए की लौ चेहरे पर पड़ने से चेहरे की लालिमा अधिक हो जाती है।
काव्य-सौन्दर्य
भावपक्ष
• त्यौहार भारतीय संस्कृति का प्रमुख अंग है।
• दिवाली त्यौहार पर बच्चों की खिलोनों की जिद्द पूरी की गई है।
• इस प्रकाश पर्व में मिट्टी के घरौंदों तक को प्रकाशित करने वाली परम्परा को उजागर किया गया है।
कला-पक्ष
• हिन्दी उर्दू मिश्रित शब्दावली का प्रयोग हुआ है।
• पहली, दूसरी और चौथी पंक्ति की तुकबन्दी रुवाई को मूलभूत विशेषता है।
आँगन में दुनक रहा है जिदयाया है
बालक तो हई चाँद पै ललचाया है
दर्पण उसे दे के कह रही है माँ
देख आईने में चाँद उतर आया है
प्रसंग:- पूर्ववत्। – इस रुबाई में बच्चे की जिद्द को पूरा करने के लिए एक माँ द्वारा चाँद को आइने में उतारने का वर्णन किया गया है।
व्याख्या- बाल हठ हमारे लिए कोई नई बात नहीं है। आँगन में खेलता हुआ बच्चा चाँद लेने की जिद करता है। बच्चे के लिए चाँद कंवल एक खिलाने के समान है। बच्चा चाँद रूपी इस खिलान में खेलने को लालायित है। नो इस बाल हठ के सामने विवश है। अन में थक हार कर माँ बच्चे को समझाती है कि देखो आसमान का चाँद तुम्हारे लिए इस शोश में उतर आया है। अब तुम चाहो तो इसके साथ हो।
काव्य-सौन्दर्य
भावपक्ष
• ‘मैया में तो चन्द्र खिलौना लहों सुरदास के प्रसिद्ध पद का प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित होता है।
• ठूनकना, जिद्दाना और ललचाना बालहत के लक्षण है।
• वात्सल्य रस का प्रभावपूर्ण चित्रण है।
कला-पक्ष
• चाँद का आइने में उतरना एक सुन्दर शब्द चित्र है।
• हिन्दी-उर्दू मिश्रित शब्दावली का प्रयोग हुआ है।
• पहली, दूसरी और चौथी पंक्तियों में तुकबंदी रुवाई की विशेषता है।
रक्षा बंधन को सुबह रस की पुतली
छायी है घटा गगन की हलकी हलकी
बिजली की तरह चमक रहे हैं लच्छे
भाई के है बांधती चमकती राखी
प्रसंग पूर्ववत्। – इस रुवाई में शायर ने भाई-बहन के त्योहार रक्षा बंधन का वर्णन किया है। व्याख्या रक्षा बंधन का त्यौहार प्रायः वर्षा ऋतु (श्रावन मास में ही आता है। वर्षा ऋतु में प्रकृति अपने यौवन पर होती है। ऐसे में रक्षा बंधन को सुबह प्रकृति के अनेक रसों से सराबोर (पुती हुई) दिखाई देना स्वाभाविक है। जैसे आसमान में धीरे-धीरे करके उस पर छा जाती है, उसी प्रकार भाई-बहन के प्यार से सारा वातावरण रस और प्रेम से भर जाता है। भाई के हाथ पर बंधी राखी की लड़ियों इस प्रकार चमकती है जैसे आसमान में छाए बादलों के बीच बिजली के गुबों की चमक बहन के लिए किसी उत्साह से कम नहीं होती है। राखी के गुच्छों की चमक बहुत के जीवन को प्रकाशित करके उसका मार्गदर्शन करती है।
काव्य-सौन्दर्य भावपक्ष
• रक्षा बंधन भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है।
• रक्षा बंधन का प्रकृति से समन्वय दर्शनीय है। प्रकृति के उद्दीपन रूप का वर्णन किया गया है।
कला-पक्ष
• हल्की-हल्की में पुनरुक्ति प्रकाश अंलकार है।
• राखी और बिजली की तुलना में उपमा अलकार है।
• सुबह को रस से पोतना एक अद्वितीय उदाहरण है।
• भाषा सरल, सहज और सरम है।
गज़ल
नौरस गुझे पखड़ियों की नाजुक गिरहें खोले है
या उड़ जाने को रंगो-यू गुलशन में पर तोलें हैं।
प्रसग:- प्रस्तुत पक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ‘आरोह में संकलित ‘गजल’ शीर्षक से ली गई है। इनके रचयिता ‘फिराक गोरखपुरी जी है। शायर ने इन पंक्तिया में प्रकृति के आलम्बन रूप सन्त ऋतु का वर्णन किया है। व्याख्या शायर कहते हैं कि प्रकृति के नौ रसों के प्रभाव के कारण पेड़-पौधा की कलियों को पंखयाँ अपनी कोमल गांठों को खोलने लगी है अर्थात् सभी कलियाँ फूल बन जाने के लिए तत्पर है। बाग की सभी कलिया के फूल बन जाने के बाद फूलों के रंग और खुशबू भी चारों तरफ फैलने के लिए अपने पंख खोलने लगे है। लोक प्रचलित वाली में वसन्त ऋऋतु के सुहावने मौसम का नीरस भी कहा जाता है। इस ऋतु में सभी पेड़-पौधा में नए पत्ते और फूल आने से वातावरण रंगा और खुशबू से भर जाता है। प्रकृति में नए रस का संचार हो जाता है।
काव्य-सौन्दर्य
भावपक्ष
• प्रकृति का आलम्बन विभाव वर्णित है।
• रंग और बू (खुशबू) का मिश्रण अधिक रोचक है।
• कोमल भावनाओं का वर्णन गजल का सहज गुण है।
कला-पक्ष
• उर्दू के शब्दों की प्रधानता है।
• ‘या’ शब्द शायर के संशय को दशाता है।
• पंक्तियों के अंत में तुकबंदी होने से गेयता का गुण विद्यमान है।
• नीरस शब्द का अर्थ ‘नया रस’ तथा ‘नौ रसो से बना लेने से श्लेष अलकार बन जाता है।
तारे आँखें झपकायें हैं जर्रा जर्रा सोये हैं
तुम भी सुनो हो यारो! शब में सन्नाटे कुछ बोले हैं
प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक ‘आरोह में संकलित फिराक गोरखपुरी की ‘गजल’ से ली गई हैं। शायर ने इन पंक्तियों में रात का वर्णन किया है।
व्याख्या:- रात का वर्णन करते हुए शायर लिखते हैं कि इस समय प्रकृति का कण-कण साया हुआ है। बाग और खामोशी और सन्नाटा है। ऐसे सन्नाटे में केवल एक ही क्रिया चल रही है तारों का टिमटिमाना। गत के इस सन्नाटे में तारों का आँखें झपकाना शायर को कुछ संदेश देता, कुछ बोलता दिखाई पड़ता है। प्रकृति किसी भी समय शिक्षित और गतिहोत नहीं होती. सदा गतिशील रहती है। शावर ने सम्बोधित किया है कि मित्रों! रात के इस सन्नाटे में हमे तारों की तरह टिमटिमाना चाहिए अर्थात विपरीत परिस्थितियों में भी गतिशील रहने की सीख लेनी चाहिए।
काव्य-सौन्दर्य
भावपक्ष
• सन्नाटे का बोलना प्रकृति के उद्दीपन रूप को दर्शाता है।
• सम्बोधन शैली के कारण पाठकों श्रोताओं से लगाव बढ़ता है। .
कला-पक्ष
• जर्रा जर्रा में पुनरुक्ति अलंकार है।
• पूरे पद में मानवीकरण अलंकार की अद्भुत छटा सन्नाटे का बोलना विरोधाभास अलंकार है।
• हिन्दी और उर्दू के मिश्रित शब्दों का प्रयोग हुआ है।
• गेयता का गुण विद्यमान है।
हम हों या किस्मत हो हमारी दोनों को इक ही काम मिला
किस्मत हमको से लेवे है हम किस्मत को रो ले हैं।
प्रसंग:- पूर्ववत्इन पंक्तियों में शायर ने भाग्य और व्यक्ति के पुरुषार्थ में समन्वय दिखाने का प्रयास किया है।
व्याख्या:- फिराक गोरखपुरी जी कहते हैं कि हमें और हमारी किस्मत दोनों को एक दूसरे पर रान का कार्य मिला है। कहा जाता है कि भाग्य व्यक्ति के पुरुषार्थ से ही बनता है। व्यक्ति भाग्य का निर्माता स्वयं होता है। ऐसे में यदि व्यक्ति पुरुषार्थ करना छोड़ दे तो भाग्य उस पर रोता है कि मुझे बनाने का प्रयास क्यों नहीं किया जा रहा है। कमहीन व्यक्ति यह सोचकर कि मुझे जो कुछ मिलेगा, वह मेरे कर्मों से नहीं भाग्य से मिलेगा, बैठा रहता है। व्यक्ति और भाग्य दोनों ही व्यक्ति को पुरुषार्थ पर ही आधारित हैं। दोनों को एक दूसरे पर रोने से बचाना है तो व्यक्ति को पुरुषार्थ करना अनिवार्य है। कर्महीन व्यक्ति अपनी असफलता को भाग्य को विडम्बना कहकर उस पर रोने के अतिरिक्त कुछ नहीं करता।
भावपक्ष
• कर्महीनता को छोड़ने का संदेश परोक्षरूप से दिया गया है।
• पुरुषार्थ से व्यक्ति अपना भाग्य स्वयं बनाता है।
कला-पक्ष
• किस्मत का रोना मानवीकरण अंलकार है।
• अनुप्रास अंलकार का प्रयोग किया गया है।
• भाषा सरल और भावानुरूप है।
• भाषा सरल, सहज और सरस है।
जो मुझको बदनाम करे है काश वे इतना सोच सके
मेरा परदा खोले हैं या अपना परदा खोले हैं
प्रसंग:- पूर्ववत्। इन पंक्तियों में शायर ने दूसरों की निंदा करने को कुप्रवृत्ति पर करारा व्यंग्य किया है। दूसरों की निंदा अर्थात् चुगली करने में व्यक्ति अपनी नीच प्रवृत्ति और छोटी सोच को ही प्रदर्शित करता है। व्याख्या शावर कवि कहते हैं कि जो लोग मेरी बदनामी करने में लगे हुए हैं। मेरी बुराइयों को दूसरों के सामने प्रकट करने में अपनी शक्ति को नष्ट कर रहे हैं। काश भगवान उन्हें ऐसो सद्बुद्धि दे जिससे वे सोच सके कि दूसरे की बुराई करके हम चुगली करने को अपनी ही छुपी हुई कुवृत्ति को उजागर कर रहे है। व्यक्ति अपने अवगुण, अपनी कायरता और अपने आहे की तुष्टि के लिए दूसरों की निन्दा जैसा घृणित कार्य करता है। दूसरे के परदे खोलना अपने आप में ही एक निन्दनीय और तुच्छ कार्य है। किसी की निन्दा करके हम उसको कभी कोई हानि नहीं पहुँचा सकते, बल्कि उल्टा अपना ही नुकसान करते हैं।
काव्य-सौन्दर्य
भावपक्ष
• पर निन्दा एक सामाजिक अपराध है जिसे जाने अनजाने हम सभी कर जाते है।
• चुगली करने जैसी बुरी आदत से बचने की सलाह दी गई है।
कला-पक्ष
• भाषा सरल सरस और प्रवाह पूर्ण है।
• “परदा खोलना’ मुहावरे का प्रयोग अति सुन्दर है।
• ‘या’ शब्द निन्दक को अपने घृणित कार्य पर सोचने को विवश करता है।
• ‘सोच सक’ में अनुप्रास अलंकार है।
ये कीमत भी अदा करे हैं हम बदुरुस्ती-ए-होशो हवास
तेरा सौदा करने वाले दीवाना भी हो ले हैं
प्रसंग:- पूर्ववत्। इन पंक्तियों में कवि ने प्यार की कीमत अदा करने की बात कही है।
व्याख्या:- प्यार एक अनमोल और अतुलनीय भावना है। किसी अन्य वस्तु से इसकी तुलना करना व्यर्थ है। शायर प्यार की कीमत अपनी बदनामी के रूप में पूरे विवेक के साथ कर रहा है अपना प्यार प्राप्त करने के लिए उसे यदि समाज में बदनामी का कष्ट भी सहना पड़े तो स्वीकार है। अपने प्रियतम से प्यार पाने के लिए, उसका सौदा करने के लिए दीवानापन अर्थात पागलपन की सीमा तक जाने के लिए तैयार है पागल प्रेमी समाज की कभी परवाह नहीं करता। उसका मुख्य उद्देश्य तो कंवल प्रेमी तक ही सीमित रहता है।
काव्य-सौन्दर्य
भावपक्ष
• प्रेमी अपने प्रेम की कोई भी कीमत चुका सकता है।
• यह प्रेमी का भोलापन ही है जो कीमत अदा करता है, सौदा भी करता है और दीवाना भी हो जाता है।
• दीवानापन प्रेम की चरम सीमा है।
कला-पक्ष
• बदुरुस्ती-ए-होशो हवास उर्दू का सुंदर प्रयोग है।
• दीवानापन तथा होशो हवास में विरोधाभास है, होशोहवास के होते हुए दीवानेपन की स्थिति नहीं बन सकती।
• उर्दू शब्दों के प्रयोग से गज़ल में उर्दू की स्वाभाविक मिठास प्रवाहित हो रही है।
तेरे गम का पासे-अदब है कुछ दुनिया का खयाल भी है
सबसे छिपा के दर्द के मारे चुपके-चुपके रो ले हैं
प्रसंग:- पूर्ववत्। इन पंक्तियों में शायर ने कहा है कि प्यार के दर्द को व्यक्ति किसी के सामने व्यक्त नहीं कर सकता। उसे चुपके चुपके रोने को विवश होता है। व्याख्या जिस प्रेम को व्यक्ति सब कुछ खोकर प्राप्त करता है, उसके वियोग का दुख असहनीय हो जाता है। व्यक्ति दुविधा में फंस जाता है। जहाँ एक ओर प्रियतम की यादें भुला नहीं पाता, दूसरी ओर उन यादों को लोकलाज के भय के कारण किसी के सामने प्रकट भी नहीं कर सकता समाज तो प्रेम करने वाला का सदा से ही दुश्मन के रूप में देख आया है। वियोग के दर्द को छुपाना और ऊपर से गने की मनाही मी दुख को कई गुना बढ़ा देती है। इसलिए प्र को रोना भी चुपके चुपक ही पड़ता है।
काव्य-सौन्दर्य
भावपक्ष
• प्रेमी के दुख और दुविधा का सुंदर वर्णन है।
• लोकलाज के भय से व्यक्ति दर्द में भी खुलकर नहीं से सकता। प्यार की यह सबसे बड़ी हार होती हैं।
• गजल में वर्णित वियोग वर्णन हिन्दी कवि बिहारी के वियोग वर्णन की याद दिलाता है।
कला-पक्ष
• पूरी गज़ल में गेयता का गुण विद्यमान है।
• चुपके चुपके में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
• चुपके चुपके रोना में विरोधाभास अलंकार है।
• गम पास अदय तथा खयाल आदि उर्दू शब्दावली का प्रयोग सराहनीय है।
फितरत का कायम है तवाजुन आलमे-हुस्नो-इश्क में भी
उसको उतना ही पाते हैं खुद को जितना खोले हैं।
प्रसंग पूर्ववत्।इन पंक्तियों में शायर ने हुस्न और इश्क के संतुलन के नियम की व्याख्या की है। व्याख्या इस संसार में सुन्दरता और प्रेम के संतुलन की यह आदत अभी भी प्रचलित है कि प्रेमी अपने प्रेम में जितना अधिक डूब जाता है, उतनी ही अधिक मात्रा में प्रेम को प्राप्त कर लेता है। कहने का अभिप्राय है कि प्रेमी सांसारिक बंधना को छोड़कर जितना भी इनसे दूर होता चला जाएगा वह उतना ही अपने प्रेम को पाने का अधिकारी हो जाता है। प्रेम को चरम सीमा पर जाकर तो व्यक्ति स्वयं को भूल जाता है उसे कंवल अपने प्रेमी की सत्ता का ही आभास शेष रह जाता है। त्याग हो प्रेम का दूसरा नाम है।
काव्य-सौन्दर्य
भावपक्ष
• हिन्दी साहित्य की ‘जो दुबे से तरे, सो डूबे’ तथा ‘जिन बुढया तिन पाइया, गहरे पानी पैठो’ पंक्तियों से समानता दिखाई पड़ती है।
• कबीरदास के रहस्यवाद की स्पष्ट झलक है।
• सौन्दर्य और प्रेम के सनातन संबंध पर प्रकाश डाला गया है। .
कला-पक्ष
• हिन्दी को अपेक्षा उर्दू शब्दों को अधिकता प्रेम के प्रवाह को बढ़ाने में सफल हुई है।
• खुद को खोकर पाना कबीरदास की उल्टवासियों से मिलता जुलता प्रयोग है।
• विरोधाभास अलंकार का प्रयोग हुआ है।
आबो-ताब अशआर न पूछो तुम भी आँखें रक्खो हो ये जगमग बैतों की दमक है या हम मोती रोले हैं
प्रसंग:- प्रस्तुत पद हमारी पाठ्य पुस्तक ‘आरोह’ में संकलित फिराक गोरखपुरी को ‘गजल’ से लिया गया है। शायर के कविता के बाहरी सौंदर्य से बचकर उसके भीतरी सौंदर्य को निहारने की सलाह दी है।
व्याख्या- फिराक गोरखपुरी पाठक को कहते है कि आपको शायरी की बाहरी चमक-दमक पर ही ध्यान नहीं देना चाहिए। शायरी की असली सुंदरता उसके अर्थ में निहित होती है। शायर पाठक से यह आशा रखते हैं कि इस विषय में पाठक अपनी सूझ-बूझ का परिचय देते हुए शायरी की बाह्य चमक-दमक से बचे रहेंगे। पाठक शेरों की चमक से प्रभावित हुए उसके उत्पन्न रस रूपी मोतियों को इक्ट्ठा करने का प्रयास करेंगे। सौप का आंतरिक भाग ही मोती होता है। पाक को बाह्य खोल सौंप की अपेक्षा उसके आंतरिक भाग मोती का समेटन का प्रयास करना चाहिए।
काव्य-सौन्दर्य
• भावपक्ष शायरी के आंतरिक पक्ष के सौंदर्य को उभारने का प्रयास किया गया है। बाह्य सौंदर्य की अपेक्षा अंत: सौंदर्य को अधिक महत्त्व दिया गया है।
कला-पक्ष
• आँखें रखना और मोती रोलना मुहावरों का प्रयोग किया गया है।
• उर्दू शब्दावलों को प्रधानता है।
• गेयता की गुण स्वाभाविक है।
ऐसे में त याद पै आये है अजमने मन में रिदों को
रात गये गर्द पै फरिश्ते बाबे-गुनह जग खाले हैं,
प्रसंग- पूर्ववत्। इन पंक्तियों में शायर ने शराब में दुबे प्रेमी को आकाश के देवता के समान बताया है।।
व्याख्या:- अपने प्रियतन से बिछुड़ने के दर्द को प्रेमी अक्सर शराब के नशे में डूब कर उसकी यादों से छुटकारा पाने का प्रयास करता है। शराब की महफिल में बैठे एक शराबी को उसके प्रियतम से वार्तालाप और उसके कार्य याद आते हैं, जिन्हें वह भुलाना चाहता है। वियोग में व्यक्ति अकेला हो जाता है। महफिल में बैठा प्रेमी अपने प्रियतम की बीती यादों का स्मरण करके उनका इस प्रकार अध्ययन करता जैसे कि रात के समय आकाश में बैठ देवतागण संसार के पापों का अध्ययन कर रहे हो। सच्चे प्रेम की अभिव्यक्ति वियोग में ही परिलक्षित होती है। वियोग में प्रेमों और प्रियतम की भावनाओं का एकीकरण उन्हें देखता से भी ऊंच पद का अधिकारी बना देता है।
काव्य-सौन्दर्य
भावपक्ष
• शृंगार रस का वियोग वर्णन किया गया है। ‘गई पे फरिश्ते’ इस्लाम दर्शन का मूलाधार है।
• “रात में दुख की अधिकता होती है ऐसी अनुभूति हिन्दी साहित्य में प्रचुर मात्रा में मिलती है।
• दुख और दर्द की अनुभूति गज़ल को प्रमुख विशेषता है।
कला-पक्ष
• उर्दू शब्दों की प्रधानता के कारण उर्दू का स्वाभाविक मिठास प्रवाहित है।
• गेयता का गुण विद्यमान है।
• शराबी को देवता कहने से उपमा अलंकार का आभास होता है।
सदके फिराक एजाजे मुखन के कैसे उड़ाली ये आवाज इन गज़लों के परदों में तो ‘मीर’ की गजले बोले हैं
प्रसंग:- पूर्ववत्।अन्तिम पंक्तियों में फिराक गोरखपुरी ने अपनी गजलों की तुलना मीर की गज़लों से की है। व्याख्या उर्दू शायरी की एक परम्परा है अन्त में कवि/शायर का नाम अपनी रचना में समाहित करना गोरखपुरी ने इसी परम्परा का निर्वाह करते हुए पाठक से अपनी गजल पर न्यौछावर होने की बात कही है। उर्दू के प्रमुख शावर मोर और गालिब की गजलों में सवाद शैली और लाक्षणिक प्रयोग प्रमुख रहे हैं। गोरखपुरी ने भी आमजन की बात को इसी शैलो में आगे बढ़ाकर अपनी गजलों में इन्हीं शायरों जैसा दर्द पैदा किया है। यही कारण है कि शायर अपनी शायरी को बेहतरीन मानते हुए पीर की गजलों जैसा बताते है। अपनी गजलों में उन्हें मीर को गज़लों के बोल सुनाई पड़ते हैं।
भावपक्ष
• फिराक गोरखपुरी की शायरी वास्तव में मीर और गालिब से समानता की सामर्थ्य रखती है।
• व्यक्ति अपनी रचना का सबसे बड़ा आलोचक स्वयं होता है।
कला-पक्ष
• उर्दू के शब्दों की प्रमुखता है।
पूरी गजुल में गेयता का गुणा है।
• रचना में अपना नाम जोड़ना हिन्दी साहित्य के लिए नया प्रयोग है।
• भाषा सरल, सहज और सरस है।
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