पतझर में टूटी पत्तियाँ पाठ सारांश | Patjhar Me Tuti Pattiyan Class 10 Summary in Hindi

NCERT Solution:- Patjhar Me Tuti Pattiyan Class 10th Chapter 16 of Hindi Sparsh Book Has Been Developed For Hindi Course. Here we are providing Explanation and Summary and pdf. Our Aim To Help All Students For Getting More Marks In Exams.

पुस्तक:स्पर्श भाग दो
कक्षा:10
पाठ:16
शीर्षक:पतझर में टूटी पत्तियाँ
लेखक:रवींद्र केलेकर

Summary For Class 10 Hindi Sparsh Chapter 16 Patjhar Me Tuti Pattiyan

गिन्नी का सोना शुद्ध आदर्शों का स्वरूप

मज़बूत सोने में ताँबा मिलाने पर गिन्नी का सोना बनता है। यह अधिक चमकीला और शुद्ध होता है। औरतें इसी सोने के गहने बनवाती हैं। शुद्ध आदर्श भी शुद्ध सोने के समान होते हैं। कुछ लोग उसमें व्यावहारिकता का ताँबा मिला देते हैं और उसे चलाकर दिखाते हैं। तब हम लोग उन्हें ‘प्रैक्टिकल आइडियलिस्ट’ कहकर उनका वर्णन करते हैं, पर यहाँ ध्यान देना आवश्यक है कि वर्णन आदर्शों का नहीं, व्यावहारिकता का होता है। ऐसे में ‘प्रैक्टिकल आइडियलिस्टों’ के जीवन से आदर्श धीरे-धीरे पीछे हटने लगते हैं और उनकी व्यावहारिक सूझबूझ ही आगे आने लगती है।

गांधीजी के विलक्षण आदर्श

कुछ लोगों का मानना है कि गांधीजी व्यावहारिकता को पहचानते थे, इसलिए वे विलक्षण आदर्श चला सके। गांधीजी कभी आदर्शों को व्यावहारिकता के स्तर पर नहीं उतरने देते थे, बल्कि वे व्यावहारिकता को आदर्शों के स्तर पर चढ़ाते थे। वे सोने में ताँबा नहीं, ताँबे में सोना मिलाकर उसकी कीमत बढ़ाते थे ।

व्यवहारवादी व आदर्शवादी लोग

व्यवहारवादी लोग हमेशा जागरूक होते हैं। वे लाभ-हानि का हिसाब लगाकर ही कदम उठाते हैं। वे अपने जीवन में सफल भी होते हैं, परंतु महत्त्व इस बात का अधिक है कि खुद ऊपर चढ़ें और दूसरों को भी लेकर ऊपर चढ़ें। दूसरों को साथ लेकर ऊपर चढ़ने का काम आदर्शवादी लोगों ने ही किया है। ऐसे लोगों ने ही समाज को शाश्वत मूल्य दिए हैं। व्यावहारिक लोगों ने तो समाज को गिराया ही है।

झेन की देन जापानियों के मानसिक रोग का कारण

लेखक ने अपने मित्र से पूछा कि यहाँ (जापान) के लोगों को कौन-सी बीमारियाँ अधिक होती हैं। उसके मित्र ने जवाब दिया कि जापान के अस्सी फीसदी लोग तनाव के कारण मन से अस्वस्थ है। इसका कारण उनके जीवन की बढ़ती रफ़्तार है। यहाँ कोई चलता नहीं, बल्कि दौड़ता है। अमेरिका से प्रतिस्पर्द्धा के कारण एक महीने में पूरा होने वाला काम एक दिन में ही पूरा में करने की कोशिश की जाने लगी। दिमाग की रफ़्तार वैसे ही हमेशा तेज़ रहती है, उसकी रफ़्तार और तेज़ करने से दिमाग का तनाव बहुत अधिक बढ़ जाता है। इसी कारण जापान में मानसिक रोग बढ़ गए हैं।

लेखक का जापानियों की टी- सेरेमनी में जाना

शाम को लेखक के मित्र उसे ‘टी-सेरेमनी’ में ले गए। चाय पीने की यह एक विधि है। जापानी में इसे ‘चा-नो-यू’ कहते हैं। वह एक छ: मंजिला इमारत थी, जिसकी छत पर दफ़्ती की दीवारों वाली और चटाई की ज़मीन वाली एक सुंदर पर्णकुटी थी। बाहर बेढब-सा (भद्दा-सा) एक मिट्टी का बर्तन पानी से भरा था। हाथ-पाँव धोकर व तौलिए से पोंछकर सभी लोग अंदर गए। अंदर बैठे चाजीन ने कमर झुकाकर उन्हें प्रणाम किया और बैठने की जगह दी। अँगीठी सुलगाई, उस पर चायदानी रखी। बगल के कमरे से जाकर कुछ बर्तन लाकर तौलिए से साफ़ किए। चाय तैयार हुई, तो चाजीन ने चाय भरे प्याले उन लोगों के सामने रखे। वहाँ लेखक सहित तीन मित्र थे। इस विधि में शांति मुख्य बात होती है, इसलिए तीन से अधिक व्यक्तियों को एक साथ प्रवेश नहीं दिया जाता था।

टी- सेरेमनी में चाय पीने की प्रक्रिया

टी-सेरेमनी में उपस्थित सभी लोगों के प्याले में दो घूँट से ज़्यादा चाय मौजूद नहीं थी। वे लोग होंठों से प्याला लगाकर एक-एक बूँद चाय पीते रहे। करीब डेढ़ घंटे तक यह सिलसिला चलता रहा। दिमाग की रफ़्तार धीरे-धीरे धीमी पड़ने लगी। लेखक को लगा मानो वर्तमान क्षण अनंतकाल जितना विस्तृत है और वह अनंतकाल में जी रहा है, यहाँ तक कि उसे सन्नाटा भी स्पष्ट सुनाई देने लगा।

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