पहलवान की ढोलक पाठ सारांश | Pahalwan Ki Dholak Class 12 Summary In Hindi

Ncert Books के सभी Chapters को बच्चो को पड़ना और समझना चाहिए क्योंकि जब बच्चे पाठ को ध्यान से पड़ेंगे तो उन्हें उस विषय के बारे में संपूर्ण जानकारी मिलेगी। सीबीएसई बोर्ड के एनसीईआरटी किताब “आरोह भाग दो” कक्षा बारवी के भक्तिन पाठ का सारांश यानी Summary Of Pahalwan Ki Dholak Class 12 दिया गया ताकि आसानी से पाठ याद रहे।

Hindi Class 12 Chapter 14 Pahalwan Ki Dholak Summary in Hindi

इस कहानी के माध्यम से लेखक ने गाँव, अंचल एवं ग्रामीण संस्कृति का सुंदर चित्र प्रस्तुत किया है। ऐसा लगता है मानो हरेक पात्र वास्तविक जीवन जी रहा हो। यह कहानी व्यवस्था बदलने के साथ लोक-कला और इसके कलाकार के अप्रासंगिक होने की कहानी है। राजा साहब की जगह नए राजकुमार के सत्ता संभालने से लुट्टन पहलवान, राज-पहलवान से भूखमरी के कगार पर चला जाता है। यह सत्ता परिवर्तन यहाँ व्यक्तिगत सत्ता परिवर्तन नही; बल्कि ज़मींनी और परम्परागत व्यवस्था के पूरी तरह पलट जाने और उस पर एकदम नई व्यवस्था के आरोपित का प्रतीक है। भारत अब इण्डिया बन गया है। पुरानी मान्यताएं टूट रही हैं, लेकिन भारतीय ग्राम की दशा ज्यों की त्यों भयावह और विकट बनी हुई है। दंगल की जगह अब घोड़ों की रेस ने ले ली है, लेकिन ग्रामीण महामारी टस से मस नहीं हुई। लोगों को अब भी कफ़न के अभाव जाता है।


कहानी के पहले भाग में लेखक ने प्रकति और प्रशासन की मार झेल रहे एक गाँव का वर्णन किया है। अमावस की ठंडी में में ध्वनि और कुत्तों का रोना रात की विकट भयावहता को और अधिक सघन कर देता है परिस्थितियों में गाँव का एक पहलवान और उसका ढ़ोल रात्रि की इस भीषणता को चुनौती देता दिखाई पड़ता है। पहलवान का नाम है- लुट्टन, जो नी वर्ष की आयु में ही अनाथ हो जाता है। अनाथ होने से पहले उसकी शादी हो चुकी थी और विधवा सास ने ही उसका पालन-पोषण किया। गाँव के लोगों द्वारा अपनी सास की तकलीफों का बदला लेने के लिए की गई कसरत ने उसे एक पहलवान बना दिया।

कहानी के इस भाग में लूट्टन पहलवान का एक राज पहलवान बनने तक के सफर का लेखा-जोखा है। मेला देखने गए लुट्टन ने पहलवान चाँद सिंह उर्फ ‘शेर के बच्चे को चुनौती दे डाली, जिसे शिकार प्रिय-राजा साहब अपने दरबार में रखने की बात कर रहे थे। दर्शक गण लुट्टन द्वारा चाँद सिंह को दी गई चुनौती को उसका पागलपन बता रहे थे। राजा साहब ने भी उसे पहलवान के साथ लड़ने से मना कर दिया। लेकिन धुन का पक्का लुट्टन उससे लड़ने की अपनी जिद पर अड़ा रहा। यहां सभी कुछ लुट्टन के खिलाफ था लेकिन एक चीज जो लगातार उस प्रेरणा और हिम्मत दे रही थी वह ढाल की ताल। जिसे बाद में लुट्टन ने अपना गुरु भी माना। ढोल की इसी ताल से प्रेरित होकर लुट्टन ने उस पहलवान का धूल चटाई और राजा साहब न खुश होकर लुट्टन का राज-पहलवान घोषित कर दिया। जीत के पश्चात उसका विरोध कर रहा जनमत उसकी जय-जयकार करने लगा। लोकन राज दरबारी छोटी जाति का होने के कारण उसकी राज पहलवान की नियुक्ति का दबे स्वर में विरोध कर रहे थे। इस विरोध को राजा साहब ने दवा दिया।


राज पहलवान बनने के बाद लुट्टन ने सभी नामी पहलवानों को हरा कर अपने को अर्जय बना लिया था। वह पूरे ऐशा आराम का जीवन व्यतीत करने लगा। उसकी जोड़ी का कोई पहलवान नहीं था, इसलिए वह अपने दो लड़कों को पहलवानी


राजा साहब की मृत्यु के बाद विलायत से आकर नए राजकुमार ने राज्य की बागडोर संभाल ली। सत्ता परिवर्तन के साथ-साथ शासन व्यवस्था को पूरी तरह बदल दिया। राज दरबार से पहलवान को निकाल दिया गया। वह अपने दोनों पुत्रों का लेकर गाँव आ गया, वहाँ गाँव के लड़कों को दांव-पेच सिखा कर जीवन व्यतीत करने लगा। लेकिन धीरे-धीरे कर के उसका दंगल सुना हो गया। अनावृष्टि, अन्न की कमी तथा मलेरिया और हैजा इन सबने मिलकर गाँव को खाली कर दिया था। मुर्दों को बिना कफन के नदी में बहाया जा रहा था। गाँव से हर रोज दो-तीन लाशें उठ रही थीं। इस दुख और प्राकृतिक कहर के कारण लोगों में बोलने तक की शक्ति नहीं रह गई थी। लेखक ने कहानी के इस भाग में सत्ता परिवर्तन का शायद आजादी का प्रतीक माना है और संकेत किया है कि इसके बाद भी गांवों की दशा में कोई सुधार नहीं हुआ।



लेखन ने कहानी के अंतिम भाग में भी रात के समय को चुना है। (प्रारम्भ की तरह)। जो संकेत करता है कि भारतीय ग्रामीण जीवन की रात्रि का अभी कोई सवेरा नहीं हुआ है अर्थात उनकी समस्याओं का अभी अन्त नहीं हुआ। पूरे गाँव के लिए केवल पहलवान की लगातार बजती ढोलक हैं जो मृत्यु को चुनौती देती सुनाई देती है, उसी से उन्हें मात से लड़ने की प्रेरणा मिलती है। पहलवान के दोनों बेटों की मौत भी ढोलक की मौत से लड़ने की प्रेरणा को कम नहीं कर सकी। लेकिन चार पाँच दिन बाद रात को अचानक ढोलक की आवाज सुनाई देनी बंद हो गई। भूखमरी से पहलवान मर चुका था। जीवन भर अजय रहने वाला लुट्टन मौत के सामने चित हो गया। कहानी के आखिर में लेखक ने जिन सियारों को क्रंदन करते दिखाया था, वे ही सियार इक्ट्ठे होकर मृतक पहलवान का माँस नोच कर खा गए और उसकी ढोलक के चमड़े को भी फाड़ डाला। इस घटना के माध्यम से लेखक ने असामाजिक तत्त्वों की ओर संकेत किया है, जो सत्ता परिवर्तन के पश्चात् पहले से अधिक ताकतवर हो गए। एक कलाकार और उसकी कला को समाप्त करके उस पर अपना साम्राज्य स्थापित किए हुए हैं। इस करुणा/त्रासदी में लुट्टन पहलवान हमारे सामने कई सवाल छोड़ जाता है. क्या कला केवल राजाश्रय में ही जीवित रह सकती है या उसका कोई स्वतन्त्र अस्तित्व है? हम कला को जीवित रखने के लिए क्या योगदान दे सकते हैं? आदि।

NCERT Summary को बच्चो को ध्यान में देते हुए बनाए गए हैं ताकि उन्हें किसी भी परेशानी का सामना ना करना पड़े और वे सभी Students अपने परीक्षा परिणाम में अच्छे अंक ला के अपने जीवन को सफल बना पाए मुझे आप के ऊपर पूरा विश्वास है कि आप सभी अपने परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करेंगे।

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