NCERT Solutions:- The Kshitij Part 1 book of Class 9th Students has been developed for Hindi Core Course. We are going to Provide you all Questions and Answers with pdf of Chapter 3 Upbhoktaavad Ki Sanskriti Written by Shyamacharan Dubey .
Book: | क्षितिज भाग 1 हिंदी |
Chapter: | उपभोक्तावाद की संस्कृति |
Writter: | श्यामाचरण दुबे |
Class: | 12th |
Board: | Cbse |
Upbhoktaavad Ki Sanskriti Class 12 Question Answers
प्रश्न 1. लेखक के अनुसार जीवन में ‘सुख’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर: लेखक का कहना है कि उपभोक्तावाद के दर्शन ने आज सुख की परिभाषा बदल दी है। आज के समय में बढ़ते हुए उत्पादों का भोग करना ही सुख कहलाता है। दूसरे शब्दों में जिन उत्पादों से हमारी इच्छा पूर्ति होती है, उस इच्छा पूर्ति को सुख कहते हैं। लेखक का कहना है कि उत्पाद के प्रति समर्पित होकर हम अपने चरित्र को भी बदल रहे हैं।
प्रश्न 2. आज की उपभोक्तावादी संस्कृति हमारे दैनिक जीवन को किस प्रकार प्रभावित कर रही है?
उत्तर: आज की उपभोक्तावादी संस्कृति सामान्य व्यक्ति के दैनिक जीवन को बुरी तरह से प्रभावित कर रही है। आज हम विज्ञापन की चमक-दमक के कारण वस्तुओं के पीछे भाग रहे हैं। हम उसकी गुणवत्ता को नहीं देखतेहै। संपन्न वर्ग की होड़ करते हुए सामान्य जन भी उसे पाने के लिए लालायित दिखाई देता है। दिन-प्रतिदिन परंपराओं में गिरावट आ रही है, आस्थाएँ समाप्त होती जा रही हैं। आधुनिकता के झूठे मानदंडों को अपना रहे हैं। अभी प्रतिस्पर्धा में रपनी वास्तविकता को खोकर दिखावेपन को अपनाते जा रहे हैं। विज्ञापन के सम्मोहन में फंस कर हम उसके वश में होते जा रहे हैं।
प्रश्न 3. गाँधी जी ने उपभोक्ता संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती क्यों कहा है?
उत्तर: गांधी जी ने उपभोक्ता संस्कृति को हमारे समाज के लिए चुनौती इसलिए कहा है क्योंकि दिखावे की संस्कृति के फैलने से सामाजिक अशांति और विषमता बढ़ती जा रही है। हमें अपने समाज में स्वस्थ सांस्कृतिक प्रभाव बनाए रखने होंगे। यदि ऐसा न किया गया तो हमारी सामाजिक नींव हिल जाएगी। उपभोक्ता संस्कृति हमारे लिए एक बहुत बड़ा खतरा है।
प्रश्न 4. आशय स्पष्ट कीजिए
(क) जाने-अनजाने आज के माहौल में आपका चरित्र भी बदल रहा है और आप उत्पाद को समर्पित होते जा रहे हैं।
आशय: उपर्युक्त कथन का आशय यह है कि आज हम वस्तु की गुणवत्ता को न देखकर, विज्ञापन की चमक-दमक में फँस जाते हैं तथा संपन्न वर्ग की देखा-देखी हम भी उन्हें पाने के लिए लालायित रहते हैं। परिणामस्वरूप उस उत्पाद के प्रति समर्पित होकर हम आज के माहौल में ढलते जा रहे हैं।
(ख) प्रतिष्ठा के अनेक रूप होते हैं, चाहे वे हास्यास्पद ही क्यों न हो।
आशय: कहने का आशय है कि संपन्न और प्रतिष्ठित व्यक्तित्व कोई भी काम कर सकता है। वह उसके व्यक्तित्व को निखारे में मदद करता है। लेकिन वही काम किसी सामान्य व्यक्ति द्वारा किया जाता है तो वह हँसी का पात्र बन जाता है।
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