NCERT Solution:- Chota Mera Khet and Bagulo Ke Pankh Poem Class 12th Chapter 9 of Aaroh Part-II Book has been developed for Hindi Course. We are going to show Summary & Saransh with Pdf. Our aim to help all students for getting more marks in exams.
पुस्तक: | आरोह भाग दो |
कक्षा: | 12 |
पाठ: | 9 |
शीर्षक : | छोटा मेरा खेत, बगुलो के पंख |
लेखक: | उमाशंकर जोशी |
Chota Mera Khet, Bagulo Ke Pankh Class 12th Explanation & Vyakhya In Hindi
छोटा मेरा खेत चौकोना
कागज का एक पन्ना,
कोई अधड कहीं से आया
क्षण का बीज वहाँ बोया गया।
प्रसंग :- प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ हमारी हिन्दी की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह’ में संकलित ‘छोटा मेरा खेत’ शीर्षक कविता से उद्धृत है। इस कविता के कवि उमा शंकर जोशी जी हैं जिन्होंने बढ़े ही सरल उदाहरण द्वारा कवि और उसकी कृति की महिमा को दर्शाने का भरसक प्रयास किया है। प्रस्तुत पंक्तियों में एक खेत के माध्यम से कवि ने अपने जीवन की खुशियों और काव्य रचना का चित्र प्रस्तुत किया है।
व्याख्या:- कवि कहता है जिस प्रकार किसी किसान का एक छोटा-सा चौरस खेत होता है उसी प्रकार कवि का कागज से बना एक पृष्ठ उसके चौरस खेत के समान है। उस किसान के खेत में कहाँ से आँधी तुफान के साथ एक पल में (कही से) कोई एक एक बीज उड़कर आ जाता है और वहीं पर ठहर जाता है। उसका वहाँ बिना किसी योजना के ही रोपण हो जाता है। इसी प्रकार कवि के जीवन में भी भावात्मक आंधी कहीं से अचानक आ जाती है और इस भावात्मक आँधी से कोई रचना-विचार या अभिव्यक्ति पल-भर से बीज रूप में उसे मिल जाती है। जिससे वह रचना का निर्माण करता है। यहाँ पर कवि ने अपने जीवन की तुलना एक छोटे से किसान से को है तथा अपने काव्य कृत को उसकी खेती करने के समान माना है।
काव्य सौन्दर्य भाव पक्ष
• कवि ने अपने कवि-कर्म को एक सरल व स्पष्ट उदाहरण के द्वारा अवतरित करने का प्रयास किया है।
• अभिधा शब्द शक्ति का चुनिंदा शब्दों में भावात्मक प्रयोग स्पष्ट होता है।
कला पक्ष
• सरल, सरस, स्पष्ट भाषा के प्रयोग का सुन्दर, भावात्मक दृश्य प्रस्तुत किया है।
• कागज का में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है।
• ‘श्वंत चौकोना’ में रूपक अलंकार का प्रयोग है कि
• अंधड़, बीज, बोया आदि शब्दों में प्रतीकात्मकता का सुन्दर उदाहरण है।
• तुकबंदी के कारण गेयता का गुण काव्य में विद्यमान है।
कल्पना के रसायनों को पी
बीज गल के गया निःशेष:
शब्द के अंकुर फुटे,
पल्लव-पुष्पों से नमित हुआ विशेष ।
प्रसंग:- पूर्वगत इन पक्तियों में कवि यह बताना चाहता है कि किस प्रकार, कल्पना व विचार से रखना का होता है, और कवि इस रचना निर्माण में खो जाता है।
व्याख्या:- इन पंक्तियों में कवि कहता है कि बीज रोपने के बाद उस पर विभिन्न रसायनों का काम किया जाता है और वह बीज न होकर अंकुर को उत्पन्न करता है उसी प्रकार काव्य या लेख में मूल विचार या अधिनादि काल्पक की सहायता से विकसित होता है और इस प्रक्रिया में स्वयं विगलित हो जाता है। अर्थात मूल भाव अपने साथ कल्पनाका मिश्रण कर काव्य के निर्माण में सहायक है और अंततः कृति एक पूर्ण स्वरूप धारण करने के लिए शब्दों के आकर फूटने आरम्भ हो जाते हैं। इस बीज का विकास अन्त में एक खिले हुए फूल तक पहुँच जाता है यह अपने पूर्ण रूप की प्राप्ति कर लेता है। इसी प्रकार शब्दों के विकास व वृद्धि से एक पूर्ण स्वरूप कृति का निर्माण होता है। इसी कृति के निर्माण को हम कृषि क्षेत्र में पुरियत पल्लवित होने की स्थिति कहते हैं।
काव्य सौन्दर्य भाव पक्ष
• यहाँ कवि ने कल्पना व विचार के मिश्रण को ही किसी कृति के निर्माण का आधार माना है।
• अभिधा शब्द शक्ति में सौन्दर्यात्मकता के साथ पल्लव- पुष्पों में लाक्षणिकता का पुट भी है।
कला पक्ष
• सरल, सरस, स्पष्ट भाषा के प्रयोग का सुन्दर भावात्मक दृश्य प्रस्तुत किया है।
• ‘कल्पना के पल्लव-पुष्प’ में अनुप्रास अलंकार के सौन्दर्य की छटा विद्यमान है।
• तुकबंदी के कारण पंक्तियों में गेयता का गुण प्रयोग हुआ है।
• प्रतीकात्मकता का सुन्दर प्रयोग किया गया है।
झूमने लगे फल, रस अलौकिक
अमृत धाराएं फूटती
रोपाई क्षण की, कटाई अनंतता की
लूटते रहने से जरा भी नहीं कम होती ।
रस का अक्षय पात्र सदा का
छोटा मेरा खेत चौकोना।
प्रसंग:- पूर्ववत् । इन पंक्तियों में कवि विचार व कल्पना के मिश्रण त से बनी रचना का साहित्य में स्थान निर्धारित करते हुए उसकी प्रसिद्धि व प्रसार के कभी समाप्त न होने की बात कहते है।
व्याख्या :- कवि उस बीज के बारे में आगे बताते हुए कहते हैं कि कि हिन्दी कि ‘छए (उस पर पुष्प खिलने के बाद फल से भरपूर बन गया, और उस पर अमृत के समान मीठे रसीले फल आ गए हैं। बीज की पल भर की रोपाई के कारण ही आज यह पुष्प व फल युक्त बन गया है और इसके फलों का कितना बड़ा भाग लंबे समय तक नि प्राप्त होता रहता है जोकि बार-बार तोड़े जाने पर खत्म नहीं होती बल्कि बढती जाती है। इस प्रकार कवि इन पंक्तियों के माध्यम से नव-विचार द्वारा निर्मित आलौकिक रस धारा को प्रदान करती हुई साहित्यिक कृति का निर्माण पल भर में उत्पन्न विचार रूपी बीज के कारण ही संभव हुआ है पर जब यह रस धारा अनंत काल तक चलने वाली कटाई से भी कम नहीं होती है अर्थात् इस कृति के पढ़ने वालों की संख्या बढ़ती रहती है और इस कृति (रचना) रूपी फल का अमृत रस पान करती रहती है।
कवि का विचार है कि रस से भरा यह कभी न खत्म होने वाला बर्तन सदा के लिए स्थिर हो जाता है अर्थात उत्तम साहित्य कालजयी होता है और असंख्य पाठकों द्वारा असंख्य बार पढ़ा जाता है। नम कृति के असंख्य पाठ होते हैं। इसलिए उस कृति का निर्माण जिस विचार व कल्पना के कारण होता है यह असख्य लोगों का विचार बन जाता है। फिर भी क अपने काव्य कृत को एक छोटे चौकोने खेत के समान मानता है और इस खेत में विचार रूपी बीज के द्वारा फसल की रचना को बनाता रहता है और रचना रूपी फसल किसान को फसल को तरह जल्दी से नष्ट नहीं होती समयावधि तक चलती है।
काव्य सौन्दर्य
भाव पक्ष – कवि का विचार है कि उत्तम (काव्य) साहित्य कालजयी होता है और यह असंख्य पाठकों द्वारा अनेकों बार पढ़ा जाता है।
कला पक्ष –
• तत्सम प्रधान शब्दावली का सौन्दर्यात्मक प्रयोग हुआ है।
• सरल, सरस, स्पष्ट भाषा का चित्र भावात्मकता को जागृत करता है।
• अनुप्रास, रूपक, अलंकारों का सुन्दर प्रयोग है।
• रोपाई क्षण को, कटाई अनंतता की व लुटते रहने से जरा भी कम नहीं होती में विरोधाभास अलंकार है।
• ‘अक्षय पात्र’ में ‘कालजयी साहित्य की तथा अन्य कई स्थान पर प्रतीकात्मकता का सौन्दर्य स्पष्ट रूप में दिखाई पड़ता है।
• तुकबंदी के कारण गेयता का गुण विद्यमान है।
• रहस्यात्मकता शैली का गुण काव्य सौन्दर्य में वृद्धि करता है।
बगुलों के पंख’
नभ में पाँती बंधे बगुलों के पंख,
चुराए लिए जाती वे मेरी आँखें।
कजरारे बादलों की छाई नम छाया,
तैरती साँझ की सतेज श्वेत काया।
हौले हौले जाती मुझे बाँध निज माया से
उसे कोई तनिक रोक रक्खो।
वह तो चुराए लिए जाती मेरी आँखें
नभ में पांती-बंधी बगुलों की पाँखें।
प्रसंग:- प्रस्तुत कविता ‘बगुलों के पंख’ हमारी हिन्दी की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह’ में संकलित है। जिसके रचयिता ‘उमाशंकर ‘जोशी’ जी है। इस छोटी सी कविता में कवि ने बड़े ही मनमोहक ढंग से संध्या काल के प्रकृति सौन्दर्य का सुन्दर चित्र प्रस्तुत किया है तथा इसके द्वारा मन पर पड़ने वाले प्रभाव का भी आत्मगत रूप से वर्णन किया है।
व्याख्या:- प्रस्तुत पंक्तियों में ‘जोशी जी कहते हैं कि उनकी संध्या काल का दृश्य अपनी ओर आकर्षित कर रहा है। आकाश में उड़ते हुए बगुलों की पंक्तियों में चलने का दृश्य उनकी आँखों को अत्यन्त प्रिय लगता है। ये दृश्य उनकी मन रूपी आँखों को चुरा ले जाता सा प्रतीत हो रहा है अर्थात् वो उसमें गुम हो जाना चाहते हैं। कवि संध्या-सौन्दर्य का वर्णन करते हुए कहते हैं कि काले-काले बादलों की परछाई पूरे आकाश में छाई हुई है तथा इन काले कजरारे बादलों के ऊपर ये बगुला की पंक्तियाँ इन पर तैरती साँझ के सफेद रंग के शरीर के समान प्रतीत होती है। काले बादलों पर संध्या का सफेद प्रकाश रूपों शरीर तेजी से जाता हुआ प्रतीत हो रहा है। संध्या काल के इस दृश्य को कवि अपने अन्दर समेट लेना चाहता है। लेकिन कवि कहता है कि धीरे-धीरे यह दृश्य (सांझ का) अपने जादू में मुझे बाँधता जा रहा है। कवि को यह दृश्य अत्यन्त मनमोहक लग रहा है। इसलिए वे चाहते हैं कि इस दृश्य को कोई भी यदि कुछ देर के लिए रोक दे तो वह उसका अच्छी तरह से निहार कर ग्रहण कर लें। कवि इस संध्या के सुन्दर दृश्य को देखकर बाकि सब कुछ भूलकर इसी में डूबा सा रह जाता है। कवि को काले बादलों मैं एक साथ मिलकर पंक्तियों के रूप में उड़ते सफेद बगुलों का सुन्दर चित्र अपनी ओर आकर्षित कर रहा है और यह दृश्य कवि की आँखों में बसता जा रहा है। उसे अपनी आँखों से कुछ ओर नज़र नहीं आ रहा है। ऐसा प्रतीत होता है जैसे यही संध्या चित्र उसकी आँखों को चुरा ले गया है।
काव्य सौन्दर्य
भाव पक्ष
• कवि काले बादलों में श्वेत बगुलों की पंक्तियों के मनमोहक संध्या के दृश्य में सब कुछ भूला देना चाहता है और इसी का रस पान करना चाहता है।
• अभिधा शब्द-शक्ति का चुनिंदा शब्दों में सुन्दर जादू पाठक को अपनी ओर आकर्षित करने तथा भावात्मक दोहन करने में सहायक है।
कला पक्ष
• सरल, स्पष्ट, सरस भाषा का प्रवाहमयी चित्र प्रस्तुत किया गया है।
• ‘तैरती सांझ की श्वेत काया’ में रूपक अलंकार का सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत किया गया है।
• बँधे बगुलों, सतेज श्वेत आदि में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है।
• हौले-हौले में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है। तुकबंदी के कारण गेयता का गुण कविता के कला सौन्दर्य में वृद्धि करता है।
• कविता में शब्दों के नए प्रयोग हुए हैं जैसे-सतेज, पाँती आदि। • प्रकृति सौन्दर्य में रति भाव का वर्णन है।
• चुरा ले जाना, स्नेह-प्रेम का प्रतीक है। इसलिए प्रतीकात्मकता का सुन्दर प्रयोग है।
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