बात सीधी थी पर पाठ सारांश | Bat Sidhi Thi Par Class 12 Summary in Hindi

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पुस्तक:आरोह भाग दो
कक्षा:12
पाठ:3
शीर्षक :कविता के बहाने, बात सीधी थी पर
लेखक:कुंवर नारायण

Kavita Ke Bahane & Baat Sidhi Thi Par Class 12th Explanation & Vyakhya In Hindi

बात सीधी थी पर एक बार
भाषा के चक्कर में
जरा टेढ़ी फँस गई।
उसे पाने की कोशिश में
भाषा को उलटा पलटा
तोड़ा मरोड़ा
घुमाया फिराया
कि बात या तो बने
या फिर भाषा से बाहर आए-
लेकिन इससे भाषा के साथ साथ
बात और भी पेचीदा होती चली गई।

प्रसंग:- प्रस्तुत पद्याश हमारी हिन्दी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह’ में संकलित ‘बात सीधी थी पर’ शीर्षक कविता से ली गई है जोकि कुँवर नारायण जी के काव्य-संग्रह ‘कोई दूसरा नहीं’ से उदधृत है। इसमें कवि ने कविता में कथ्य और माध्यम के द्वंद्व को उकेरते हुए भाषा की सहजता की बात की है।

व्याख्या:- कुँवर नारायण जी अपनी आधुनिक कविता के माध्यम से बताना चाहते है कि कई बार हम अपनी बात को किसी कविता के माध्यम से या फिर मौखिक रूप से कहना चाहते हैं लेकिन भाषा के चक्कर में पड़ जाते हैं और वही बात बहुत पेचीदा हो जाती है। फिर प्रयत्न करते हैं कि किसी तरह इधर-उधर घुमा-फिरा कर बात बन जाये। लेकिन इससे बात और कविता में कलिष्टता आ जाती है और जो बात एकदम सरल तरीके से कहने की थी, वह और भी बिगड़ कर भयानक रूप धारण कर लेती है।

काव्य सौन्दर्य
(क) भाव पक्ष –

• कविता या बात में हमेशा सहज भाषा का प्रयोग करना चाहिए, व भाषा की कलिष्टता की तरफ ध्यान नहीं देना चाहिए।

(ख) कला पक्ष

• भाषा के सरल, सरस एवं प्रवाहमयी रूप का सुंदर प्रयोग किया गया है।
• उर्दू शब्दावली का प्रयोग प्रचूर मात्रा में किया गया है।
• अनुप्रास अलंकार का प्रयोग किया गया है।
• साथ-साथ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार का प्रयोग है।
• गंभीर विचार को सरलता से कहने की कवि में कला विद्यमान है। ‘बात बन जाना’ मुहावरे का प्रयोग किया गया है।

सारी मुश्किल को धैर्य से समझे बिना
मैं पेंच को खोलने के बजाए
उसे बेतरह कसता चला जा रहा था
क्यों कि इस करतब पर मुझे
साफ़ सुनाई दे रही थी
तमाशबीनों की शाबाशी और वाह वाह।
आखिरकार वही हुआ जिसका मुझे डर था
ज़ोर ज़बरदस्ती से
बात की चूड़ी मर गई
और वह भाषा में बेकार घूमने लगी!

प्रसंग:- पूर्ववत् इस पद में कवि बताता है कि किसी बात के बिगड़ने पर हम उसे समझे बिना उसे और

व्याख्या:- कवि बात के बिगड़ने पर उसे धैर्य से समझने की अपेक्षा उसे हताशा से और भी बिगाड़ता चला जाता है। जब कोई इस तरह हमारे काम या बात की बिगड़ते देखते हैं, तो वे इसका भरपूर आनन्द लेते हैं जिससे हमें लज्जित और शर्मिन्दा होना पड़ता है। अंत में जिस बात को लेकर कवि चिंतित था वही हुई। बात को अच्छी बनाने के चक्कर में वह प्रभावहीन हो गई और भाषा की कलिष्टता में बेकार होकर रह गई जिससे उसके अर्थ में सार्थकता नहीं रहीं।

काव्य सौन्दर्य

(क) भाव पक्ष –
अच्छी बात या अच्छी कविता का बनना सही बात का सही शब्द से जुड़ना होता है। जब ऐसा हो जाता है तो अतिरिक्त। मेहनत की आवश्यकता नहीं होती, वह सरलता से हो जाती है।

(ख) कला पक्ष

• सहज, सरल, सरस भाषा की प्रवाहमयता का अनूठा प्रयोग किया गया है। उर्दू शब्दावली का प्रयोग हुआ है जैसे- मुश्किल, बेतरह करतब तमाशबीनों, जबरदस्ती आदि।

• जोर जबरदस्ती और साफ़ सुनाई में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग किया गया है। वाह-वाह में पुनरुक्ति प्रकाश अंलकार का प्रयोग हुआ है। ‘बात की चूड़ी मरना’ मुहावरे का प्रयोग किया गया है।

हार कर मैंने उसे कील की तरह
उसी जगह ठोंक दिया।
ऊपर से ठीकठाक
पर अंदर से
न तो उसमें कसाव था
न ताकत!
बात ने, जो एक शरारती बच्चे की तरह
मुझसे खेल रही थी,
मुझे पसीना पोंछते देख कर पूछा-
‘क्या तुमने भाषा को
सहूलियत से बरतना कभी नहीं सीखा ?”

प्रसंग:- पूर्ववत! प्रस्तुत पंक्तियों में कवि बताता है कि कथ्य और भाषा का सही सामंजस्य नहीं बनने से वह बात को वहीं पर छोड़ देता है।

व्याख्या:- सभी प्रयत्नों के बाद भी कथ्य और भाषा में सांमजस्य न होने के कारण कवि को वह बात कील की तरह उसी जगह पर ठोकनी पड़ती है। परिणामस्वरूप वह ऊपर से तो ठीक-ठाक दिखाई देती है लेकिन अंदर से उसमें कोई दम और मजबूती नहीं थी अर्थात् उसमें भावों की अभिव्यक्ति का अभाव था। कवि कहता है जिस प्रकार एक शरारती बच्चा हमसे शरारत करके चिढ़ाता रहता है। उसी प्रकार कविता में या बात में कथ्य और भाषा का सांमजस्य न होने पर भाषा मुझसे पूछती है कि तुमने कभी भाषा को सही तरीके से प्रयोग करना नहीं सीखा। अगर ऐसा करना आ जाता है तो किसी दबाब या अतिरिक्त मेहनत करने की आवश्यकता हमें नहीं होती वह अपने आप सहूलियत के साथ हो जाती है।

काव्य सौन्दर्य

(क) भाव पक्ष – कथ्य और भाषा में सांमजस्य होने पर कविता या बात पूर्ण हो जाती है उसके बाद किसी दबाव या अतिरिक्त मेहकी जरूरत नहीं पड़ती। इसलिए हमें कथ्य और भाषा के समय पर जोर देना चाहिए न कि भाषा की

(ख) कला पक्ष

• सहज, सरल, सरस भाषा की प्रवाहमयता का अनूठा प्रयोग है। उर्दू शब्दावली का प्रयोग किया गया है जैसे शरारती बरतना, सहुलियत आदि।

• ठीक ठाक पसीना पोंछते, सहूलियत से में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग किया गया है।

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