NCERT Solution:- Badal Rag Poem Class 12th Chapter 7 of Aaroh Part-II Book has been developed for Hindi Course. We are going to show Summary & Saransh with Pdf. Our aim to help all students for getting more marks in exams.
Badal Rag Class 12th Explanation & Vyakhya In Hindi
पुस्तक: | आरोह भाग दो |
कक्षा: | 12 |
पाठ: | 7 |
शीर्षक : | बादल राग |
लेखक: | सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला” |
तिरती है समीर-सागर पर
अस्थिर सुख पर दुख की छाया
जग के दग्ध हृदय पर
निर्दय विप्लव की प्लावित माया
प्रसंग:- प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिन्दी की पाठ्य पुस्तक ‘आरोह’ में संकलित कविता) ‘बादल-राग’ से लिया गया हैं। जो मूल रूप से छायावादी धारा के प्रतिनिधि कवि सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ जी के काव्य संग्रह ‘परिमल’ में संकलित है। यह एक प्रगतिवादी कविता है जिसमें बादल को ‘क्रान्ति दूत’ बनाकर कवि ने छोटे मजदूरों और किसानों का मार्मिक चित्रण किया है। इन पंक्तियों में गरीवजन के दुःख का वर्णन हुआ है
व्याख्या:- निराला जी कहते हैं कि शोषित वर्ग के सुख के अनिश्चित, चंचल थोड़े से समय पर दुःख का डर हमेशा मंडराता रहता है जिस प्रकार समुद्र के ऊपर हवा बहती रहती है। अर्थात सुख का समय अल्प होता है और जीवन में दुःखों, कष्टों का सामना करने के बाद यह समय आता है। लेकिन इस समय में भी हमें दुःख के आने का डर हमेशा सताता रहता है। इसी प्रकार हमारे समुद्र रूप जीवन पर दुःख उस हवा के समान है जिसका क्षेत्र अधिक व्यापक है। इन्सान रोता हुआ जग में आता है और अनेक कष्टों व दुःखों के साथ ही संसार को छोड़ देता है। कवि जी कहते हैं कि इस संसार के सभी लोगों के दिलों में दुःख की ताप है। सभी किसी न किसी दुःख से पीड़ित हैं। इन दुःखों की निष्ठुर उथल-पुथल, विपत्तियों में सारा संसार डूबा हुआ है। अर्थात् कोई भी व्यक्ति इस संसार में प्रसन्नचित्त नहीं है। सभी के हृदय दुःखों से भरे हुए सुख के पलों को खोज रहे हैं।
काव्य सौन्दर्य
(क) भाव पक्ष (अभिव्यक्ति पक्ष )
• निराला जी ने दुःख के विस्तृत क्षेत्र में सुख के कुछ सुनहरे पलों को ढूंढने पर प्रकाश डालना चाहा है तथा दुःख से पीड़ित समस्त जगत को अनेक विपत्तियों में डूबा हुआ दर्शाया है।
• ‘तिरती है समीर-सागर पर पंक्ति द्वारा सुख-दुःख की लाक्षणिकता को प्रकट किया है।
(ख) कला पक्ष (अनुभूति पक्ष )
• संस्कृतनिष्ठ सामासिक पदावली का प्रयोग कर भाषा को गुरु गम्भीर बनाया गया है।
• मुक्तक छन्द शैली का प्रयोग सौन्दर्य वृद्धि में सहायक सिद्ध हुआ है।
• अनुप्रास अलंकार तथा ‘समीर सागर पर’ रूपक अलंकारों का प्रयोग भी भावाभिव्यक्ति में सहायक है।
• प्रतीकात्मकता के माध्यम से करुण रस का मार्मिक चित्रण हुआ है।
• अस्थिर, निर्दय आदि शब्दों में विशेषण के महत्त्व पर प्रकाश डाला गया है।
यह तेरी रण-तरी
भरी आकांक्षाओं से,
घन, भेरी-गर्जन से सजग सुप्त अंकुर
डर में पृथ्वी के आशाओं से
नवजीवन की, ऊंचा कर सिर,
ताक रहे हैं. ऐ विप्लव के बादल!
फिर-फिर
प्रसंग:- पूर्ववत्। इन पंक्तियों में कवि ने उन छोटे व गरीब लोगों का मार्मिक चित्रण किया है जो क्रान्ति के द्वारा नवजीवन व उन्नति कर सकते हैं। इस पद्यांश में बादल रूपी ‘क्रान्ति दूत’ को छोटे पौधे पुकार रहे हैं।
व्याख्या:- निराला जी कहते हैं कि हे क्रान्ति के दूत बादल! तेरी यह युद्ध की नाव नई-नई इच्छाओं व अभिलाषाओं से भरी हुई है। अर्थात् क्रान्ति से गरीब जन को बहुत अपेक्षाएँ हैं। बादल को संबोधित करते हुए कवि कहते हैं कि तेरी इस दृढ़ मजबूत दुन्दुभी (युद्ध के समय बजने वाला बड़ा ढोल) की आवाज की गरजना से पृथ्वी के हृदय में सोये हुए डंठल (अंकुर) निकलते हुए सचेत हो गए हैं। अर्थात् बादलों की क्रान्ति गर्जन से गरीब जन सावधान हो गए हैं। अब उनमें बादल के कारण नया जीवन मिलने की उम्मीद जाग उठी है। इसलिए अब वह अंकुर रूप में बीज से फूट कर अपना सिर उठाकर निकलने लगे है और बार-बार क्रान्ति रूपी बादल को देख रहे हैं। कवि यहाँ कहना चाहता है कि जिस प्रकार बादलों के आने से लघु पौधों, अंकुरित पौधों का विकास होता है। उसी प्रकार क्रान्ति के आने से गरीब व छोटे लोगों के जीवन को एक दिशा मिलती है तथा उनका विकास होता है। इसलिए वो ही क्रान्ति की पुकार करते हैं।
काव्य सौन्दर्य
क) भाव पक्ष
• निराला जी इन पंक्तियों में क्रान्ति के आगमन से प्रसन्नचित्त दलितों का वर्णन करते हैं। वे कहते हैं कि क्रान्ति के कारण गरीबों व दलितों को नवजीवन मिलता है उनका विकास होता है।
• बादल रूपी क्रान्ति की गर्जना द्वारा विभिन्न भावों की लाक्षणिकता प्रकट की गई है।
(ख) कला पक्ष
• संस्कृतनिष्ठ शब्दावली से सरल, सहज भाषा की सुन्दरता में वृद्धि हुई है।
• रूपक भेरी-गर्जन व विप्लव के बादल में तथा ‘फिर-फिर’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार की छटा सौन्दर्यात्मक है।
• छन्द मुक्त कविता भावात्मक प्रधान है।
• ओज रस की स्तुति प्रार्थना परक हैं।
बार-बार गर्जन
वर्षण है मूसलधार
हृदय थाम लेता संसार,
सुन-सुन घोर वज्र- हुंकार।
अशनि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर,
क्षत-विक्षत हत अचल-शरीर,
गगन-स्पर्शी स्पर्द्धा धीर ।
प्रसंग:- पूर्ववत् । प्रस्तुत पद्यांश में ‘निराला’ जी बादल के आगमन पर होने वाली विभिन्न परिस्थितियों का वर्णन करते है। कवि ने बादल रूपी उठने वाली क्रान्ति के आगंतुक दृश्य का वर्णन किया है।
व्याख्या:- निराला जी कहते हैं कि बादलों की बार-बार गर्जन और मूसलाधार वर्षा से संसार में सभी वर्ग मीत हो जाते है तथा उसकी तेज गर्जना को सुनकर सभी को विकट व भीषण प्रलय का अंदेशा होता है। यहाँ पर कवि कहना चाहता है कि जिस प्रकार बादलों की भयंकर गर्जन व वर्षण का लघु पौधों पर कम प्रभाव पड़ता है वहीं बड़ी फसलों पर अत्यधिक प्रभाव पड़ता है, उसी प्रकार क्रान्ति का प्रभाव धनी वर्ग व पूंजीपति वर्ग पर अत्यधिक पड़ता है। वे क्रान्ति की गर्जना सुनकर काँप उठते हैं। जहाँ एक ओर बादल की गर्जना छोटे-छोटे पौधों को नवजीवन व नवरस प्रदान करती हैं वहीं उसकी गम्भीर गर्जना सुनकर कुबेरों का दिल धड़क जाता है।
कवि कहता है कि हे क्रान्ति दूत रूपी बादल तुम वज्रपात से लेटे हुए उन ऊँचे सैकड़ों वीरों के समान हो। तुम अनेकों भावों से घायल एक दृढ़ अटल शरीर के समान हो जो आकाश को छूने की आशा रखे हुए प्रतियोगी के समान दृढ व शान्त मन रखने वाला है। कवि कहता है कि क्रान्ति दूत अर्थात् क्रान्ति लाने वाला उन सभी सैकड़ों वीरों का प्रतिनिधि होता है जो युग अबाध गति लांघकर युग परिवर्तन कर सकता हो। क्रान्ति का यह वीर अनेकों कठिनाइयों को पार करके अपने समाज में सभी वर्गों की उन्नति में सहायक होता है।
काव्य सौन्दर्य
(क) भाव पक्ष
• निराला जी क्रान्ति से होने वाले विभिन्न वर्गों पर विभिन्न प्रभावों का वर्णन करते हुए निम्न वर्ग के ऊपर उठने का संदेश देते हैं। क्रान्ति के कारण धनी वर्ग भयभीत है।
• वर्षा बादल द्वारा शब्द शक्ति को लाक्षणिकता को दर्शाया गया है।
(ख) कला पक्ष
• तत्सम प्रधान शब्दावली के कारण भाषा की शुद्धता व सहजता का प्रभाव बढ़ा है।
• अनुप्रास अलंकार, रूपक वज्र-हुंकार, पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार भिन्न-भिन्न स्थानों जैसे – वार-बार, सुन-सुन, शत-शत में उद्घाटित हुआ है। क्षत-विक्षत में विरोधानुप्रास अलंकार है।
• भावों की अभिव्यक्ति की तीव्रता के लिए मुक्त छन्द शैली का सौन्दर्यपूर्ण वर्णन है।
• ओज व करुण रस का सुन्दर समन्वय प्रस्तुत कर कवि क्रान्ति का आवाह करता है।
• ‘हृदय थामना’ मुहावरे का पूंजीपति वर्ग के भय को दर्शाने के लिए औचित्य हैं।
हँसते हैं छोटे पौधे लघुभार
शस्य अपार,
हिल-हिल
खिल-खिल,
हाथ हिलाते,
तुझे बुलाते,
विप्लव-रव से छोटे ही हैं शोभा पाते।
प्रसंग:- प्रस्तुत पंक्तियां हमारी हिन्दी को पाठ्य पुस्तक ‘आरोह’ में संकलित कविता ‘बादल राग’ से ली गई है। इनमें कवि ‘निराला’ जी ने मुख्य रूप से छायावादी कवि होते हुए भी अपनी प्रगतिवादी विचारधारा को दर्शाया है। मूल रूप से यह कविता उनके काव्य संग्रह ‘परिमल’ में संकलित है। इन पक्तियों में दर्शाया गया है कि जिस प्रकार बादलों के आने की खुशी छोटे पौधों को होती है उसी प्रकार क्रान्ति के आगमन पर निम्न वर्ग अत्यधिक प्रसन्न होता है।
व्याख्या:- ‘निराला’ जी अपनी इन पंक्तियों में निम्न वर्ग की प्रसन्नता का वर्णन करते हुए कहते हैं कि नवजीवन प्राप्त छोटे-छोटे पौधे बादलों के आने से बहुत खुश होते हैं। नई-नई घास अपनी हरियाली द्वारा प्रसन्नता प्रकट करती है। ये छोटे-छोटे पौधे हवा में हिलते हुए अपने छोटे से शरीर को जब हिलाते हैं तो ऐसा लगता है जैसे खुशी के कारण ये तुम्हें ही बुला रहे हैं। बादलों द्वारा वर्षण की बाढ़ से इन छोटे-छोटे पौधों का कोई नुकसान नहीं होता। कवि का तात्पर्य यह है कि निम्न व गरीब जन क्रान्ति को लाने के लिए तत्पर हैं। क्रान्ति के आने से उनके मन में खुशी झलक रही है। इस कान्ति का छोटों पर इतना प्रभाव नहीं पड़ता जितना कि उच्च पूंजीपति वर्ग पर पड़ता है। क्रान्ति के इस प्रवाह के कारण जहाँ निम्न वर्ग को प्रसन्नता मिलती है वहीं कुबेरों (धनवानों) के दिलों में भय के बादल मंडराते हैं।
काव्य सौन्दर्य
(क) भाव पक्ष
• ‘क्रान्ति दूत’ बादल के आगमन पर छोटे पौधों और निम्न वर्ग को जितनी प्रसन्नता मिलती है उतना ही उच्च वर्ग भयभीत होता है। कान्ति का प्रभाव निम्न व पूजीपति दोनों वर्गों पर अलग-अलग अर्थ में पढ़ता है।
• विप्लव-रव व शस्य अपार आदि शब्दों द्वारा लाक्षणिक पदावली का भावात्मक प्रयोग है।
(ख) कला पक्ष
• सरल, सरस, सहज भाषा के कारण पद्यांश में गेयता तत्त्व विद्यमान है।
• भावाभिव्यक्ति के लिए मुक्तक छन्द शैली का सुन्दर प्रयोग किया गया है।
• अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार तथा रूपक अलंकारों का सुन्दर ढंग से प्रयोग किया गया है।
• पौधों के उत्साह के कारण वीर रस का दृश्य प्रकट हुआ है।
अटालिका नहीं है रे
आतंक भवन
सदा पंक पर ही होता
जल- विप्लव प्लावन,
क्षुद्र प्रफुल्ल जलज से सदा छलकता नीर,
प्रसंग:- पूर्ववत् इन पक्तियों में कवि ने पूंजीपति वर्ग के आतंक व अत्याचारों को दर्शाया है तथा कवि कहना चाहता है कि अन्त में क्रान्ति के कारण निम्न वर्ग को ही विजय मिलती है।
व्याख्या:- इन पंक्तियों में ‘निराला’ जो पूंजीपति वर्ग के मन में भय और आशंका को दर्शाना चाहता है। पूंजीपतियों को यह डर है कि कहीं क्रान्ति के कारण उनको ऊँची-ऊँची इमारतें न गिर पड़े। कहीं उनके आतंक व अत्याचार के कारण निम्न वर्ग उनको हानि न पहुंचा दें। इस बात से तच्च वर्ग हमेशा भयभीत रहता है। वे अपनी ऊँची-ऊँची इमारतों में भी पूर्ण सुरक्षित महसूस न करने के कारण डरे हुए हैं।
कवि कमल व कीचड़ के माध्यम से कहते हैं कि बाढ़ का पानी हमेशा से हो कीचड़ पर आकर तैरता है। बादल के कारण
जो वर्षण व वाद आई वह सब निम्न वर्ग के समान पंक पर ही ठहरती है तथा वर्षा का जल कमल के फूलों पर पड़ता
है। वह उस पर ज्यादा देर तक स्थिर नहीं रहता। यह उससे छलक कर नीचे गिर जाता है क्योंकि जल छोटे खिले हुए कमल
पर नहीं ठहर पाता। इसी प्रकार छोटा व नीच पूंजीपति वर्ग भी क्रान्ति के प्रभाव को अधिक देर तक सहन नहीं कर पाता
और जल्द ही घबरा जाता है। केवल निम्न व गरीब वर्ग ही कीचड़ के समान क्रान्ति को आधार प्रदान कर उसके प्रभाव
का सुपरिणाम प्राप्त करते हैं।
काव्य सौन्दर्य
(क) भाव पक्ष
• पूंजीपत्तियों के मन में क्रान्ति से उत्पन्न भय व त्रासदी को कवि ने सुन्दर उदाहरण द्वारा प्रकट किया है तथा पूंजीपत्तियों
व मजदूर वर्ग पर क्रान्ति के क्रमशः दुष्परिणाम व सुपरिणामों को दिखाया है।
• संपूर्ण पद्यांश में आतंक भवन, जलज, पंक प्रतीकों के माध्यम से लाक्षणिकता को प्रकट किया गया है।
(ख) कला पक्ष
• संस्कृत प्रधान तत्सम् शब्दावली द्वारा सरल व प्रवाहमयी भाषा की शोभा में वृद्धि हुई है।
• मुक्तक छन्द शैली के द्वारा भावाभिव्यक्ति में सहायता मिलती है।
• प्रतीकों-पंक-जलज के माध्यम से कवि अपने विचारों को सुन्दर ढंग से प्रकट करने में सफल हुए हैं।
• रूपक अलंकार का सुन्दर प्रयोग है।
• भय और उत्साह रस विद्यमान है।
रोग-शोक में भी हँसता है
रुद्ध कोष है. व्य तोष अंगना-अंग से लिपटे भी
शैशव का सुकुमार शरीर आतंक अंक पर कांप रहे हैं।
धनी, वज्र-गर्जन से बादल जस्त नयन-मुख ढाँप रहे हैं।
प्रसंग:- पूर्ववत्। निराला जी इन पंक्तियों में उन गरीब जन का वर्णन करते हैं जो विभिन्न विपत्तियों व दुःखों में भी प्रसन्न रहते हैं तथा साथ ही उन वैभव व ऐश्वर्य युक्त धनो लोगों का भी वर्णन किया है जो वैभव युक्त होने पर भी दुःख व भय के साथ जीवन व्यतीत करते हैं।
व्याख्या:- निराला जी कहते हैं कि नवजात शिशु का कोमल शरीर अनेक रोगों व दुःखों के होते हुए भी सदा हँसता रहता है उसी प्रकार निम्न वर्ग भी अनेक विपत्तियों में भी खुश रहता है। लेकिन वहीं अवरुद्ध धन वैभव से सम्पूर्ण और सन्तोष व तृप्ति होने पर भी धनी वर्ग व्याकुल है। अर्थात् क्रान्ति के भय के कारण धनी व उच्च वर्ग तनावयुक्त व व्याकुल है। धनी लोग अपने घरों व पत्नियों की गोद में लिपटे हुए भी डर कर काँप रहे हैं। उनका हृदय क्रान्ति से होने वाले प्रभावों से डरा हुआ है। धनी वर्ग बादलों की गर्जना रूपी क्रान्ति की ललकार सुनकर डरे हुए हैं। यह गर्जना, विप्लव की यह ध्वनि पूंजीपतियों के लिए गंभीर चेतावनी का प्रतीक है। अतः वे अपनी प्रिया के शरीर से लिपटे हुए भी काँप रहे हैं तथा डर से पीड़ित त्रस्त होकर अपना मुख ढाँप रहे हैं। अर्थात् क्रान्ति का भय उच्च वर्ग के लिए कंपन पैदा करने वाला है। इस भय का अन्त उनके वैभव, ऐश्वर्य और पत्नियों के सहयोग से भी नहीं हो रहा है।
काव्य सौन्दर्य –
(क) भाव पक्ष
• कवि इन पंक्तियों में निम्न वर्ग को विपत्तियों में भी हँसते रहने और ऊँच वर्ग को सभी ऐश्वर्य और वैभव होने पर भी भयभीत व पीड़ित होने का दृश्य स्पष्ट करते हैं।
(ख) कला पक्ष
• संस्कृतनिष्ठ पदावली का प्रयोग तथा भाषा में औचित्य शब्द चयन सराहनीय है।
• वज्र गर्जन में क्रान्ति की गर्जना का रूपक अलंकार काव्य सौन्दर्य में वृद्धि करता है।
• मुक्तक छन्द शैली का सुन्दर समुचित उपयोग है।
• भयानक रस का प्रयोग उचित रूप में प्रयुक्त है।
• भाषा सरल, सहज होने के कारण गेयता का गुण विद्यमान किए हुए है।
जीर्ण बाहु, है शीर्ण शरीर,
तुझे बुलाता कृषक अधीर, ए विप्लव के वीर!
चूस लिया है उसका सार
हाड़-मात्र ही है आधार, ऐ जीवन के पारावार!
प्रसंग:- पूर्ववत्! इन पंक्तियों में ‘निराला’ जी निर्धन किसान को दयनीय व दुःखद स्थिति का वर्णन करते हैं और जमीदार व साहूकार वर्ग के अत्याचारों को दूर करने के लिए किसानों द्वारा क्रान्ति का आहवान करवाते हैं।
व्याख्या:- ‘निराला’ जी किसान की दयनीय अवस्था का वर्णन करते हुए कहते हैं कि किसान इतना कमजोर हो चुका है कि उसकी भुजाओं की ताकत क्षीण पड़ गई है और शरीर अत्याचार सहन करते हुए कमजोर हो गया है। हे ‘क्रान्ति के दूत’ बादल तुझे यह कमजोर व व्याकुल व अत्याचार से घबराया हुआ किसान तुझे पुकार रहा है। हे क्रान्ति को उठाने वाले वीर बादल, हे क्रान्ति के दूत बादल, तू ही उसके दुःखों को दूर कर सकता है। अत्याचारी जमींदारों ने उस (कृषक) पर इतने अत्याचार किए हैं कि उसके शरीर से सारा खून चूस लिया है अर्थात किसान को सहनशीलता खत्म होती जा रही है। उसका शरीर इतना क्षीण हो चुका है कि केवल उसके हाड़ों का पिंजर ही शेष बचा हुआ है। बादलों के आने से ही अच्छी वर्षा के कारण उसकी अच्छी फसल हो सकती है और वह जमींदारों के चुंगल से निकल सकता है। दूसरी ओर उनको प्रार्थना में क्रान्ति रूपी बादल से यह आवाह्न किया गया है कि वही उनका रक्षक है वहाँ उनके जीवन का नव विकास कर सकता है।
कवि इन पंक्तियों में किसान की दुःखद हृदय से बादल रूपी क्रान्ति की पुकार को सदृश्य कर रहा है।
काव्य सौन्दर्य
(क) भाव पक्ष
• निराला ने इस (कविता) पद्यांश में किसानों को दीन-हीन दशा का चित्रण भी किया है। यह शोषित कृषक ‘विप्लव के बादलों को आमन्त्रित करता है।
• अभिधा शब्द शक्ति का भरपूर योग्यता से प्रयोग है।
(ख) कला पक्ष
• मुक्तक छन्द में प्रस्तुत पंक्तियों में शब्द चयन पर विशेष बल दिया गया है।
• संस्कृतनिष्ठ सामासिक पदावली का प्रयोग कर भाषा को गुरु गम्भीर बनाया गया है।
• अनुप्रास अलंकार के प्रयोग से भावाभिव्यक्ति में वृद्धि हुई है। • प्रार्थना परक, करुण रस की शोभा पद्यांश की सुन्दरता में वृद्धि करती है।
• नाद सौन्दर्य ने शिल्प को अद्वितीय रूप प्रदान किया है।
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