NCERT Solution:- Pad Class 10th Chapter 2 of Hindi Sparsh Book Has Been Developed For Hindi Course. Here we are providing Explanation and Summary and pdf. Our Aim To Help All Students For Getting More Marks In Exams.
पुस्तक: | स्पर्श भाग दो |
कक्षा: | 10 |
पाठ: | 2 |
शीर्षक: | पद |
लेखक: | मीरा |
Explanation For Class 10 Hindi Sparsh Chapter 2 Pad
काव्यांशों की व्याख्या
काव्यांश 1
हरि आप हरो जन री भीर ।
द्रोपदी री लाज राखी, आप बढ़ायो चीर ।
भगत कारण रूप नरहरि, धर्यो आप सरीर ।
बूढ़तो गजराज राख्यो, काटी कुण्जर पीर ।
दासी मीराँ लाल गिरधर, हरो म्हारी भीर।।
भावार्थ:- मीराबाई अपने आराध्य देव से प्रार्थना करती हैं कि हे ईश्वर ! केवल आप ही अपनी इस दासी के कष्टों को दूर कर सकते हैं। आपने ही द्रौपदी की लाज बचाकर उसे अपमानित होने से बचाया था। जिस समय दुःशासन ने भरी सभा में द्रौपदी का चीरहरण करने का प्रयास किया था, तब आपने ही उसके चीर को बढ़ाया था। इसी प्रकार अपने प्रिय भक्त प्रहलाद को बचाने के लिए आपने भगवान नरसिंह का रूप धारण किया था। आपने ही डूबते हुए हाथी को मगरमच्छ के मुँह से बचाकर उसके जीवन की रक्षा की थी और उसकी पीड़ा को दूर किया था। दासी मीरा प्रार्थना करती है कि हे गिरिधर ! आप मेरे कष्टों को भी दूर कर मुझे (आपकी दासी मीरा को) भी हर प्रकार के सांसारिक बंधन से छुटकारा दिला दीजिए
काव्य सौंदर्य
(i) सरल एवं सहज भाषा का प्रयोग हुआ है, जो अत्यधिक प्रभावोत्पादक है।
(ii) इसमें ब्रजभाषा के शब्दों के साथ-साथ राजस्थानी भाषा के शब्दों का भी प्रयोग हुआ है।
(ill) ‘काटी कुण्जर’ में अनुप्रास अलंकार है, जबकि पूरे पद में दृष्टांत अलंकार का प्रयोग हुआ है।
(iv) गेयात्मक या गीतात्मक शैली का प्रयोग हुआ है तथा प्रत्येक पंक्ति का अंतिम शब्द (पद) तुकांत है।
काव्यांश 2
स्याम म्हाने चाकर राखो जी,
गिरधारी लाला म्हाँने चाकर राखो जी।
चाकर रहस्यूँ बाग लगास्यूँ नित उठ दरसण पास्यूँ।
बिन्दरावन री कुंज गली में, गोविंद लीला गास्यूँ।
चाकरी में दरसण पास्यूँ, सुमरण पास्यूँ खरची।
भाव भगती जागीरी पास्यूँ, तीनूं बाताँ सरसी।
भावार्थ :- मीरा, श्रीकृष्ण से प्रार्थना करते हुए कहती हैं कि हे श्याम! तुम मुझे अपनी दासी (सेविका) बनाकर रख लो। मीरा, श्रीकृष्ण से प्रार्थना करती हुई दोबारा कहती हैं। हे गिरिधारी लाल ! तुम मुझे अपने यहाँ सेविका के रूप में रख लो। मैं तुम्हारी सेविका के रूप में रहते हुए तुम्हारे लिए बाग-बगीचे लगाया करूँगी, जिसमें तुम घूम सको। जब तुम रोज़ सुबह यहाँ घूमने आओगे, तो मैं तुम्हारे दर्शन कर लिया करुँगी। मैं वृंदावन के बागों और गलियों में तुम्हारी लीलाओं के गीत गाया करूँगी। तुम्हारी सेवा करते हुए मुझे तुम्हारे दर्शन करने का अवसर भी मिल जाएगा। तुम्हारे नाम-स्मरण के रूप में मुझे जेब-खर्च भी प्राप्त हो जाया करेगा। इस प्रकार मुझे तुम्हारे दर्शन, स्मरण और भक्ति रूपी जागीर-तीनों आसानी से मिल जाएँगी, जिससे मेरा जीवन सफल हो जाएगा।
काव्य सौंदर्य
(i) मुख्यत: राजस्थानी भाषा के शब्दों का प्रयोग हुआ है, जो भावों की अभिव्यक्ति में पूर्णतः सक्षम हैं।
(ii) ‘भाव भगती’ में अनुप्रास अलंकार विद्यमान है।
(iii) संपूर्ण पद में माधुर्य गुण विद्यमान है।
(iv) इसमें गेयात्मक शैली का प्रयोग किया गया है।
काव्यांश 3
मोर मुगट पीताम्बर सौहे, गल वैजन्ती माला।
बिन्दरावन में धेनु चरावे, मोहन मुरली वाला।
ऊँचा ऊँचा महल बणावं बिच बिच राखूँ बारी।
साँवरिया रा दरसण पास्यूँ, पहर कुसुम्बी साड़ी।
आधी रात प्रभु दरसण, दीज्यो जमनाजी रे तीरां।
मीराँ रा प्रभु गिरधर नागर, हिवड़ो घणो अधीराँ।
भावार्थ :- मीराबाई, श्रीकृष्ण के रूप-सौंदर्य पर अत्यंत मोहित हैं। वह उनके रूप-सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहती हैं कि श्रीकृष्ण के माथे पर मोरपंखों से बना हुआ सुंदर मुकुट सुशोभित हो रहा है। उनके शरीर पर पीले वस्त्र शोभा पा रहे हैं। उनके गले में फूलों की वैजन्ती माला बहुत सुंदर लग रही है।
मन को मोहित कर लेने वाले और मधुर मधुर बाँसुरी बजाने वाले श्रीकृष्ण वृंदावन में गाय चराते हैं। वृंदावन में मेरे श्रीकृष्ण का भव्य और ऊँचा महल है। मैं इस महल के बीचों-बीच सुंदर फूलों से सजी फुलवारी बनवाऊँगी। इसके पश्चात् मैं लाल रंग की साड़ी पहनूँगी और अपने साँवले के दर्शन करूँगी। मीरा, श्रीकृष्ण से निवेदन करती हैं कि हे प्रभु! तुम आधी रात को यमुना नदी के किनारे अपने दर्शन देने के लिए अवश्य आना, क्योंकि मेरा मन तुम्हारे दर्शन के लिए अत्यंत व्याकुल हो रहा है।
काव्य सौंदर्य
(i) इसमें मुख्यत: राजस्थानी भाषा के शब्दों का प्रयोग किया गया है, जो भावाभिव्यक्ति में पूर्णतः सक्षम हैं।
(ii) संपूर्ण पद में माधुर्य गुण विद्यमान है।
(iii) इस पद में गेयात्मक शैली का प्रयोग किया गया है।
(iv) ‘मोर मुगट’ तथा ‘मोहन मुरली’ में अनुप्रास अलंकार विद्यमान है।
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